Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ ३० १ सू० ८ स्कन्दकचरितनिरूपणम्
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गोत्रस्य 'बहुजणस्स अंतिए ' बहुजनस्यान्तिके 'एयमहं ' एतमर्थ = भगवदागमन तन्महिमारूपं 'सोच्चा' श्रुत्वा 'निसम्म ' निशम्य = हृद्यवधार्य ' इमे एयारूवे अज्झथिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मणोग संकप्पे समुपज्जित्था ' अयमेतद्रप आध्यात्मिकश्चिन्तितः कल्पितः प्रार्थितः मनोगतः संकल्पः समुदपद्यत, तत्र - 'इमेयारूवे' अयमेतद्रूपः = वक्ष्यमाणप्रकारक : ' अज्झत्थिए ' आध्यात्मिकः = आत्मगतो विचारः अङ्कर इव १, तदनु ' चिंतिए ' चिन्तितः किं सान्तो लोकः, अनन्तो लोकः ? ' इत्यादि प्रश्नोत्तररूपो विचारः द्विपत्रित व २, 'कप्पिए ' कल्पितः= स एव व्यवस्थायुक्तः 'इममेवं लोकादीनां सान्तानन्तत्वज्ञानरूपं विषयं प्रक्ष्यामी ' -ति कार्याकारेण परिणतो विचारः पल्लवित इव ३ । 'पत्थिए' प्रार्थितः =स स्स तस्स खंदयस्स ” उसकात्यान गोत्रवाले स्कन्दक परिव्राजक के मनमें (इमे एारुवे) यह इस प्रकार का (संकप्पे ) संकल्प विचार उत्पन्न हुआ । यह संकल्प कब हुआ तो उसके लिये सूत्रकार कहते हैं कि ( बहुजणस्स अंतिए एयम सोच्चा) जब उसने अनेक जनों के पास से यह भगवान महावीर के आगमन रूप अथवा उनकी महिमारूप अर्थको समाचार को सुना और हृदयमें उसे धारण कर लिया सुनने और हृदय में धारण करने के बाद ऐसा संकल्प विचार ( समुपपज्जित्था ) उत्पन्न हुआ। वह संकल्प कैसा था इसी बात को इन वक्ष्यमाण विशेषणों से विशेषित करते हुए सूत्रकार कहते हैं (अज्झत्थिए ) वह संकल्प अङ्कुर की तरह आत्मगत विचाररूप होने से आध्यात्मिक था चितिए " ( किं सान्तो लोकः अनंतो लोकः) इत्यादि प्रश्नोत्तररूप होने के कारण द्विपत्रित की तरह चिन्तित था । ( कप्पिए) कल्पित था मैं प्रभु से लोक अलोकादिकों के सान्त अनन्त होने की बात को पूछूंगा इस
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सोच्चा " न्यारे तेथे धणा सोभने भुषेथी लगवान મહાવીરતા આગમનના सभायार सांलज्या भने न्यारे तेने हृदयमां धारण अर्ध्या त्यारे कच्चायणस्स गोत्रस तस्स खंद्यस्स કાત્યાયન ગોત્રીય તે સ્કન્દકના મનમાં આ પ્રકોનો "समुपज्जित्था " ઉત્પન્ન થયા તે સ’કલ્પ કેવા પ્રકારનેા હતેા તે સૂત્રકારે નીચેના વિશેષણા દ્વારા બતાવ્યું છે. अज्झथिए " भेटले श ની માફક આત્મગત વિચારરૂપ હાવાથી તે સકલ્પ આધ્યાત્મિક હતા ચિંતિત એટલે કે લેક અન્તસહિત છે કે રહિત છે ઈત્યાદિ પ્રશ્નોત્તર રૂપ હાવાને કારણે દ્વિપત્રની જેમ (અંકુરમાંથી જે એ કુમળી પાંદડીએ ફૂટે છે તેને દ્વિપત્ર हे छे) चिन्तित तो " कप्पिए " उस्थित हुतो. भेटखेडे हु लगवानने सो અન્તસહિત છે કે અન્ત રહિત છે એ વાત પૂછીશ ઇત્યાદિ કલ્પના રૂપ વિચા
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
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