Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० ९ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५३१ भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दिता नमस्यित्वा एवमवादीत्, प्रभुः खलु भदन्त ! स्कन्दकः कात्यायनगोत्रो देवानुपियाणामंन्ति के मुंडो भूखा खलु अगारादनगारितां प्रव्रजितुम् ? हंत प्रभुः यावच्च श्रमणो भगवान् महावीरो भगवंतं गौतम मेतमर्थ परिकथयति तापच खलु स स्कन्दकः कात्यायनगोत्रस्तं देशं हव्यमागतः ॥
टीका-'गोयमा इइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी' गौतम! इति श्रमणो भगवान महावीरो भगवन्तं गौतमम् एवम्-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवासि) तुम उसे अभी ही देखोगे। (भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ) हे भगवंत इस प्रकार से संबोधित करके भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वंदना की (नमंसह) उन्हें नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता) वंदना नमस्कर कर के (एवं वयासी) फिर उन्होंने ऐसा कहा-(पहणं भंते ! खंदए कच्चायणस्स गोत्ते देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए) हे भदन्त ! क्या वह कात्यायनगोत्रवाला स्कंदक आप देवानुप्रिय के पास मुंडित होकर अगारावस्था से अनगारावस्था धारण करने के लिये शक्तिशाली है? (हंता पभू ) हां गौतम वह समर्थ-शक्तिशाली है (जावं च णं समणे भगवं महावीरे भगवओ गोयमस्स एयमé परिकहेह, तावं च णं से खं. दए कच्चायणस्स गोत्ते तं देसं हव्वं आगए) जब श्रमण भगवान महावीर गौतम स्वामी से इस बात को कह रहे थे कि इतने ही में कात्यायनगोप्रवाला वह स्कन्दक उम स्थान पर शीघ्र आ पहूँचा ॥
टीकार्थ- गोयमाइ" हे गौतम ! इस प्रकार संबोधित करके तु मा १ तेने नेश (भंते त्ति भगव' गोयमे समणं भगवं महावीर वदइ नमंसइ) 8 मावन् ! स माधन ४शन मान मडावीरने पहन नभ. २४।२ ४ा. (वदिता नमंसित्ता एवं वयासी ) वन नभ२४.२ ४ीने तभ महावीर प्रभुने 24॥ प्रमाणे ४थु-(पहूणं भंते ! खंदए कच्चायणस्स गोत्ते देवाणुदिपयाणं अतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए १) मापन। शु. તે કાત્યાયન ગેત્રીય કન્ડક આપ દેવાનુપ્રિયની પાસે દીક્ષા ગ્રહણ કરીને, मारावस्थाने त्या ४२ म२॥१स्था घा२१ ४२वाने समय छ ? (हंता पभ), गौतम ! ते समर्थ छ. (जाव च णं समणे भगव महावीरे भगवओ गोयमस्स एयमद्रं परिकहेइ,तावं च णं से खदए कच्चायणस्स गोते तं देसं हवं आगए ) श्रम भगवान महावीर प्रभु गौतम स्वामीन । पात ४२॥ હતા ત્યારે જ કાત્યાયન ગોત્રી સ્કન્દક પરિવ્રાજક ત્યાં આવી પહોંચે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨