Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1058
________________ २०७४ भगवतीस्त्रे स्मिन् धर्मास्तिकायप्रदेशे धर्मास्तिकापत्वं नास्तीति भावः । ' जाव एगपएमुणे वि य णं धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकाए ति बत्तव्वंसिया' यावत् एक प्रदेशोनोऽपि च खलु धर्मास्तिकायो न धर्मास्तिकाय इति वक्तव्यं स्यात् । अत्र यावत्पदेन द्वि-त्रि चतुः पञ्च षट्-सप्त-अष्ट-नव-दश-संख्येया-ऽसंख्येयाना धर्मास्तिकायप्रदेशानाम् ग्रहणं भवतीति । ' से किं खाइणं भंते ! धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया' अथ कः किं पुनःखलु भदन्त ! धर्मास्तिकाय इति वक्तव्यं स्यात् पुनरर्थबोधकः 'खाइए' इति देशीयशब्दः पुनरर्थे, हे भदन्त ! यदि धर्मास्तिकायस्य प्रतिपदेश धर्मास्तिकाय इति व्यवहारो वार्यते प्रदेशन्यूनेऽपि धर्मास्तिकाये धर्मास्तिकाय इति व्यवहारो वार्यते तदा पुनः कुत्र धर्मास्तिकायोऽयमिति व्यवहारः क्रियते प्रदेशसमुदायातिरिक्तस्य धर्मास्तिकायस्याभावादिति प्रश्नकर्तु राशयः । भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि. " गोयमा " हे गौतम ! " असंखेज्जा धम्मत्थिकाए पएसा " असंख्याताः धर्मास्तिकायपदेशाः " ते सव्वे" ते सर्वे व्वं सिया) यावत् एक प्रदेश से कम भी धर्मास्तिकाय पूरा धर्मास्तिकाय नहीं माना जासकता है । यहां (यावत्) पद से (धर्मास्तिकाय के अनेक प्रदेशों का ग्रहण हुआ है । (से किं खाइए णं भंते ! धम्मथिकाए त्ति वत्तव्वं सिया ) हे भदन्त ! धर्मास्तिकाय इस शब्द का व्यवहार कहां किया जा सकता है। तात्पर्य इस प्रश्न का यह है कि-जष आप धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश में धर्मास्तिकाथरूप व्यवहार होनेका निषेध कर रहे हैं और एकप्रदेश न्यून भी धर्मास्तिकायमें धर्मास्तिकायके व्यव हार होने का निषेध कर रहे हैं-तब यह तो कहिये कि धर्मास्तिकाय इस शब्द का व्यवहार कहांपर हो सकेगा ? (खाइए) यह देशीय शब्द है और पुनःअर्थ का बोधक है। इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैंगोयमा) हे गौतम ! (असंखेज्जा धम्मत्थिकाएपएप्सा) धर्मास्तिकाय में ખ્યાત પ્રદેશને પણ ધર્માસ્તિકાય કહી શકાય નહી, એક પણ પ્રદેશ ન્યૂન હોય એવા ધર્માસ્તિકાયને પણ ધર્માસ્તિકાય કહી શકાય નહીં.” (से कि खाइए ण भाते ! धम्मस्थिकाए त्ति वतन्व सिया) तो महन्त! કેને ધર્માસ્તિકાય કહી શકાય? કહેવાને ભાવાર્થ એ છે કે જે ધર્માસ્તિકાયના એક પ્રદેશને ધર્માસ્તિકાય ન કહી શકાય, એક પણ પ્રદેશની ન્યૂનતા વાળા ધર્માસ્તિકાયને પણ ધર્માસ્તિકાય ન કહી શકાય, તે એ તે કહો કે “ધર્માસ્તિકાય શબ્દને વ્યવહાર કયાં કરી શકાય ? કાને ધર્માસ્તિકાય કહી શકાય ? ॥ सूत्रमा १५॥ये। “खाइए " ५५६ ॥मी छे. तेन भय पुनः' थाय छे. गौतम स्वामीना प्रश्न उत्तर मापता प्रभु छ- (गोयमा !) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨

Loading...

Page Navigation
1 ... 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112 1113 1114