Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेrefront टीका श०२ उ० १ सू० १६ स्कन्दकचरितनिरूपणम् स्थविरैः कृतादिभिः सार्द्धं विपुलं पर्वतं शनैः शनैर्दुरो हति दुरु मेघघनसंनिकाशं देवसंनिपातं पृथिवीशिलापट्टकं प्रतिलेखयति प्रतिलेख्योच्चारप्रत्रवणभूमिं प्रतिलेखयति प्रतिलेख्य दर्भसंस्तारकं संस्तृणोति संरतीय पौरस्त्याभिमुखः संपल्येक निषष्णः करतलपरिगृहीतं दशनखं शिरसावत्तं मस्तकेऽजलिंकृत्वा
महव्वयाई आरोवेइ) पांच महाव्रतों को स्वीकार किया (आरोवित्ता) पांच महाव्रतों को स्वीकार करके (समणा य समणीओ य खामेइ) श्रमण एवं श्रमणियों आदिसे क्षमारना (खमतखामणा) किया (खामित्ता) खमा कर तहारूवेहि थेरेहिं कडाइहिं सद्धि ) बाद में तथारूप स्थविरों के साथ, कि जो संथारा करने वाले के सहायक होते हैं उनके साथ (विउलं पन्च(i) विपुलाचल पर्वत पर (सणियं सनियं) धीरे २ (दुरुहेड) बढे (दुरुहिता) वहां चढ कर ( मेहघ संनिगासं देवसंनिवार्य पुढवी सिलावयं पडिलेहेइ ) उन्हों ने सान्द्र मेघ के समान वाले तथा देवों के सन्निपात वाले पृथिवीशिलापट्टककी प्रतिलेखना की ( पडिलेहिता उच्चार पासवणभूमिं पडिलेहेइ) उसकी प्रतिलेखना करके फिर उन्हों ने उच्चारप्रस्रवण भूमि की प्रतिलेखना की ( पडिले हित्ता) उसकी प्रतिलेखना करके फिर उन्होंने ( दम्भसंधारगं संथरह) पृथिवि शिलापट्टक पर अपना दर्भका संधारा बिछाया। (संधरिता पुरस्थाभिमुद्दे संपलियंक निसन्ने ) संवारा बिछाकर फिर वे उस पर पूर्व दिशा की तरफ मुँह
या आरोवेइ ) पांय महाव्रतो गं गीअर . ( आरोवित्ता) पांच महाव्रतो भगीर ने (समणा य समणीओ य खामेइ ) तेभाणे साधु भने साध्वीओने अभतणाभां . ( खामिता तहारूवेदि थेरेहिं कडाइहिं सर्द्धि ) त्यार ખાઇ સંથારા કરનાર સાધુઓને સહાયરૂપ થાય એવા સ્થવિરાની સાથે( વિત્ઝ' पव्यय ) वियुवायस पर्वत पर (सणियं सणियं दुरुहेइ ) धीमे धीमे आरे(दुरुहिता ) तेना उपर आरोह अरीने ( मा हघणसंनिगासं देवसंनिवाय पुढवीसिलावट्टय पडिलेहेइ ) तेभाणे भेधना नेवा भेजा ववाजा तथा हेबाना सभागभ बाजा पृथ्वीशिलापट्टनी प्रतिजना री ( पडिलेहित्ता उच्चारपाल वणभूमिं पडिलेहेइ ) तेनी प्रतिसेना य पछी तेथे उभ्यार अनवाणु भूमिती प्रतिक्षेमना पुरी. ( पडिले हित्ता ) तेनी प्रतिसेना ने तेभले (दब्भसंधारगं संथरइ) पृथ्वीशिलापट्ट पर हर्लनो सधारो मिछान्यो ( संथरिता पुरस्थाभिमुझें संपलियंक निमन्ने ) सथारो मिछावीने तेथे तेना पर पूर्वं हिशाभां મુખ રાખીને પકાસને એસી ગયા. ( करयलपरिगहिय दसनह सिरसा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨