Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० ५ सू० ९ पापित्यीयस्थविरवर्णनम् ८५५ पदय संयमयोगे स्थिरीकुर्वन्ति ये ते स्थविराः श्रुतवृद्धाः । ते कीदृशाः इत्याह"जाइसंपन्ना" जातिसंपन्नाः जातिः मातृवंशः तया संपन्नाः, “ कुलसंपन्नाः, कुलं =शुद्धपैतृको वंशः, तेन संपन्नाः "बलसंपन्नाः बलमत्र मानसं तेन युक्ता इत्यर्थः " ख्वसंपन्ना" रूपसंपन्नाः शरीरसौन्दर्यसम्पन्नाः सदोरकमुखवस्त्रिकादि साधुवेषसंपन्ना वा । “विणयसंपन्ना" विनयसंपन्नाः विनययुक्ताः " णाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चारित्तसंपन्ना" ज्ञानसंपन्नाः दर्शनसंपन्नाः चारित्रसंपन्नाः ज्ञानदर्शनचारित्रैयुक्ता इत्यर्थः “ लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना" लज्जासम्पन्नाः लाघवसम्पन्नाः लज्जालाघवयुक्ता इत्यर्थे । तत्र लज्जा-असंयमतः संकुच्यमानता संयमो वा, लाघवं द्रव्यतोऽल्पोपधित्वम् भावऋद्धयादि गौरवत्यागः “ओयंसी" ओजस्विनः मनःस्थैर्युक्ताः ' तेयंसी ' तेजस्विनः शरीरप्रभायुक्ताः ‘वच्चंसी ' वर्चस्विनो हुए अन्य साधुजनों को इहलोकसंबंधी तथा पर लोक संबंधी अपायअहित प्रकटकर उस संयमयोगमें उन्हें स्थिर करते हैं। वे स्थविर जो कि 'जाइसंपन्ना' मातृवंशरूप जाति से युक्त थे , कुल संपन्ना' पितासंबंधी शुद्धवंशरूप कुल से युक्त थे 'बलसंपन्ना' मानसिक बल से युक्त थे ' रूवसंपन्ना' शरीरसौन्दर्य से, तथा सदोरकमुखवस्त्रिकादिरूप साधु वेष से युक्त थे, 'विणयसंपन्ना' विनय से युक्त थे, ‘णाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना' सम्यकज्ञान सम्यक् दर्शन और सम्यक चारित्र सम्यगतप से युक्त थे, 'लज्जासंपन्ना' असंयम से संकोच करनेरूप अथवा संघमरूप लज्जा से युक्त थे, अल्प उपधिरूप द्रव्यलाघव से, तथा ऋद्धयादि गौरव त्यागरूप भावलाघव से युक्त थे, ओजंसी' मनकी स्थिरतारूप ओज से युक्त थे, 'तेयंसी ' शारीरिक प्रभारूप तेज से युक्त સાધુઓને આલેક તથા પરલેક વિષયક અપાય અહિત બતાવીને તે સંયમयोगमा स्थि२ ४२ छ.-ते २५वि२ २ जाइसंपन्ना" भातृ संधी शुद्ध जतिथी युत , " कुलसंपन्ना, " मी पिता समधी शुद्ध ३५ हुयी युत त' " बलसंपन्ना, " या मानसिपथी युत ता, " स्वसंपन्ना" २. शरीर सौय थी तथा सही२४ मुडपत्ती माह ३५ साधुवषयी युत तi, “विणयसंपन्ना" विनयथी युक्त उत, “ णाण पंपन्ना दसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना" । सभ्य ज्ञान ' सभ्य शन मन सभ्य यात्रियी युत ' " लज्जासंपन्ना लापवसंपन्ना" यो सयम ३५ લજજા થી યુક્ત હતા, અપ ઉપધિરૂપ દ્રવ્ય લાઘવથી તથા ઋદ્ધિ આદિ गौरव त्याग३५ मावसथी युक्त ता, " ओजंसी" भननी स्थिरता ३५ सारसथी युत ता, “ तेयसी" शारी२४ प्रमा३५ तेथी युत ता,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨