Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्र सङ्गितया आर्या देवादेवलोकेपूत्पद्यन्ते । सत्यः खलु एषोऽर्थः नो चैवात्मभाव. वक्तव्यतया तत्कथमेतन्मन्ये एवम् ? ततः खलु श्रमणो भगवान् गौतम एतस्याः कथायाः लब्धार्थः सन् जातश्रद्धो यावत् समुत्पन्नकुतूहलो यथा पर्याप्तं समुदानं गृह्णाति गृहीत्वा राजगृहानगरात् पतिनिष्क्रामति अत्वरितं यावत् शोधयन् यौव कि (संजमेणं अजो अणण्हयफले ) संयम का फल अनास्रव है (तवे वोदाण फले) और तप का फल व्यवदान (निर्जरा) है। (तंचेव जाव पुव्वतवेणं पुवसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अजो! देवा देवलोएसु उधवजंति) इस विषय में जैसा कथन पूर्व ११ग्यारहवाँ सूत्र में (पुवतवेणं) इत्यादि पदों द्वारा कहा गया है वह सब कथन यहां पर समझ लेना चाहिये । अर्थात् पूर्व तप से, पूर्वसंयम से, कर्मिता से एवं संगिता से हे आर्यो ! देवलोकों में उत्पन्न होते हैं ! यह बात सत्य है-यह हमने जो ऐसा कहा है वह अपने मन से नहीं कहा है । ( से कहमेयं भंते एवं) सो यह कथन सत्य है क्या माना जा सकता है ? (तएणं समणे भगवं गोयमे इमीसे कहाए-लद्धढे समाणे जायसड़े जाव समुप्पन्नकोउहल्ले अहापज्जत्तं समुदाणं गेण्हइ ) इस प्रकार की बात लोगों के मुख से सुनते हुए भगवान् गौतम को इस बात को जानने की श्रद्धा उप्तन्न हुई यवत् वे आश्चर्य युक्त हुए और यथापर्याप्त भिक्षा उन्होंने वहां से प्राप्त की । (गेण्हित्ता) भिक्षा प्राप्त कर फिर वे (रायगिहाओ नयराओ) अज्जो अणण्हयफले) मार्यो ! सयमन ३॥ अनासप छे. (तवे वोदाण फले ) त५र्नु ५५ व्यवहान (नि० २१ ) छे. (तं चेव जाव पुवतवेण कम्मियाए संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जति) 1 विषयमा ११भा सूत्रमा (पुवतवेण) इत्यादि पह द्वारा २ ४थन ४२वामा माव्यु छ, ते ગ્રહણ કરવું. એટલે કે પૂર્વ તપથી, પૂર્વસંયમથી, કમિતાથી અને સંગતિથી, હે આર્યો ! દેવે દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. તે વાત સત્ય છે, અહંત પ્રતિપાદિત છે, અમારી કલ્પનાથી ઉપજાવી કાઢેલી નથી ત્યાં સુધી સમસ્ત सूत्रा8 अडी अड४२वी. ( से कहमेय भते एव) तो शुते ४थनने सत्य भानी शाय तेम छ ? ( तरण समणे भगव गोयमे इभीसे कहाए लद्धढे समाणे जायसड्ढे जाव समुप्पन्नकोउहल्ले अहापज्जत्तं समुदाणं गेण्हइ ) २॥ પ્રમાણે વાત લોકના મુખેથી સાંભળીને ભગવાન ગૌતમને તે વાત જાણવાની શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થઈ “યાવત્ ” તેઓ અસ્થર્ય પામ્યા, અને તેમણે ત્યાંથી જરૂર २०ी मिक्षा प्राप्त ४२१. ( गेण्हित्ता) लिan a ने ( रायगिहाओ नयराओ)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨