Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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२०३०
भगवतीसूत्रे " सासए " शाश्वतः कालत्रयवर्ती, "अवटिए" अवस्थितो द्रव्यतः 'लोगदवे' लोकद्रव्यम् , “से समासओ पंचविहे पनत्ते " स पुद्गलास्तिकायः समासतः संक्षेपतः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः "तं जहा" तद् यथा " दव्वओ खेत्तओ कालो भावओ गुणओ" द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतो भावतो गुणतः द्रव्यक्षेत्रकालभावगुणैः पञ्चविधः पुद्गलास्तिकायो भवतीत्यर्थः 'दव्वओ णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दव्वाई' कों के होने का प्रसंग प्राप्त होगा, अतः यही मानना चाहिये कि रूप रसादिवाला पदार्थ नियमतः अजीव होता है, पर जो अजीव होगा यह इन वाला हो भी और न भी हो। इस तरह यहाँ रूपी और अजीवस्व की विषम व्याप्ति ही बनती है समव्याप्ति नहीं। यह पुद्गलास्तिकाय भी अन्य अस्तिकायों की तरह ( सासए ) शाश्वत है कालत्रयवर्ती है। ( अवढिए) अवस्थित है। (लोकव्वे) लोकद्रव्यरूप है । पुद्गलास्तिकाय में जो नित्यपना एवं अवस्थितपना कहा गया है वह द्रव्य की अपेक्षा ही कहो गया है ऐसा जानना चाहिये । ( से समासओ पंचविहे पण्णत्ते ) यह पुद्गलास्तिकाय संक्षेप से पांच प्रकार का कहा गया है (तंजहा ) वे उसके पांच प्रकार ये हैं ( व्वओ खेत्तओ कालओ भावओ गुणओ) द्रव्य की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय, क्षेत्र की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय, काल की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय, भाव की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय और गुण की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय ( दवओ णं કે એ પ્રકારની માન્યતાથી તે ધર્માસ્તિકાય આદિમાં પણ રૂપ, રસાદિક હેવાનું માનવું પડે. તે આ કથનનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે સમજવું રૂપ, રસાદિવાળા પદાર્થો નિયમથી જ અજીવ હોય છે પણ જે અજીવ હોય તે રૂપ, રસાદિથી યુક્ત હોય પણ ખરું અને રૂપ, રસાદિથી રહિત પણ હોય. આ રીતે અહીં રૂપી અને અજીવત્વની વિષમ વ્યાપ્તિજ સંભવે છે-સમવ્યામિ સંભતી નથી.
ते पुस्तिय ५९ अन्य मस्तियो रे ॥ (सासए ) शाश्वत छ-त्रये भी तेनु मस्तित्व डाय छे, ( अवट्ठिए ) ते अवस्थित छे, अने (लोगव्वे ) द्रव्य ३५ छ. पुस्तियां नित्यता भने मपस्थित પણ કહ્યું છે તે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ જ કહેવામાં આવ્યું છે તેમ સમજવું.
(से समासओ पंचविहे पण्णत्ते) ते पुरसास्तियन सक्षम पाय १२ ५४ छ. (त'जहा ) ते पांय ४२ प्रमाणे छे-( दवओ, खेतओ, कालओ भावओ, गुणओ ) (१) द्रव्यनी अपेक्षा पुरवास्तिय, (२) क्षेत्रमा અપેક્ષાએ પુલાસ્તિકાય, (૩) કાળની અપેક્ષાએ પુલાસ્તિકાય, (૪) ભાવની અપેક્ષાએ પુતલાસ્તિકાય અને (૫) ગુણની અપેક્ષાએ પુલાસ્તિકાય,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨