Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ०१० सू० २ अस्तिकायस्वरूपनिरूपणम् १०३५ गौतम ! खण्डं चक्रं सकलं चक्रम् ? भगवन् सकलं चक्रम् नो खण्डं चक्रम् एवं छत्र चर्म दण्डः ष्यम्-आयुधम्-मोदकम्-तत् तेन अर्थेन गौतम ! एवमुच्यते एको धर्मास्तिकायप्रदेशोन धर्मास्तिकाय इति वक्तव्यं स्यात् यावदेकमदेशोनोऽपि च खलु धर्मास्तिकायो न धर्मास्तिकाय इति वक्तव्यं स्यात् तत् किं खाइ-पुनः खलु वक्तव्य नहीं हो सकता है यावत् एक प्रदेशन्यून भी धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय ऐसा नहीं कहा जा सकता है ? (से णूणं गोयमा! खंडे चके ? सगले चक्के ? भगवं! सगले चक्के, नो खडे चक्के एवं छत्ते, चम्मे, दंडे, दूस, आउहे, मोयए से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ एगे धम्मस्थितकायपएसे णो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया-जाव एगपएमूणे विय णं नो धम्मस्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया) हे गौतम ! हम तुमसे पूछते है कि चक्र का खंड पूरा चक्र कहलावेगा या पूरा चक्र संपूर्ण चक्र कहलावेगा ? तब गौतम ने कहा-हे भदन्त ! पूरा चक्र ही चक्र कहलावेगा, चक्र का खंड चक्र नहीं कहलावेगा, इसी तरह से छत्र, चर्म, दण्ड दृष्य, ( वस्त्र, ) शस्त्र, मोदक के विषय में भी जानना चाहिये। (से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ, एगे धम्मत्थिकायपएसे णो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्य सिया, जाव एगपएसूणे वि य णं धम्मस्थिकाए नो धम्मस्थिकाए ति वत्तव्वं सिया) इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश पूरा धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता એક પ્રદેશને ધર્મારિતકાય કહી શકાય નહીં, બે, ત્રણ આદિથી લઈને અસં. ખ્યાત પ્રદેશને પણ ધર્માસ્તિકાય કહી શકાય નહીં, અને એક પ્રદેશ ન્યૂન डाय तो ५५ तेने घस्तिय ४डी शय नही १ (से णूण गोयमा ! खंडे चक्के ? सगले चक्के १ भगवं सगले चक्के, नो खंडे चक्के) गौतम ! याना ખંડને ચક્ર કહી શકાય, કે આખા ચક્રને જ ચક્ર કહેવાય ! ગૌતમ સ્વામી જવાબ આપે છે,-હે ભદન્ત ! આખા ચકને જ ચક કહી શકાય, ચકના ખંડને य ४ही शय नहीं " मडावीर प्रभु ४३ छ (एवं छत्ते, चम्मे, दंडे दूसे, आउहे, मोयए से तेणटे ण गोयमा ! एवं वुच्चइ एगे धम्मत्थिकायपएसे णो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया जाव एगपएसूणे वि य ण धम्मस्थिकाए नो धम्म थिकाएत्ति वत्तव्वंसिया) से प्रमाणे छत्र, यम, १स, शस्त्र भाई महिना વિષયમાં પણ સમજવું એટલે કે તેમના આખા ભાગને જ છત્ર, ચર્મ આદિ કહી શકાય, તેમના ખંડને છત્ર, ચર્મ, દંડ આદિ નામે ઓળખી શકાય નહીં છે ગૌતમ ! તે કારણે જ હું એવું કહું છું કે ધર્માસ્તિકાયના એક પ્રદેશને પર ધર્માસ્તિકાય કહેવાતું નથી. બે, ત્રણ, સંખ્યાત, અસંખ્યાત આદિ પ્રદે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨