Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
भगवानाह--" पच्चक्खाणफले " प्रत्याख्यान फलम्. प्रत्याख्यान प्राणातिपातादि विनिवृत्ति फलम् विशिष्टज्ञानी पापं प्रत्याख्यातीति ॥ " से णं भंते पच्चक्खाणे किं फले ” तत् खलु भदन्त ! प्रत्याख्यानम् किं फलम् ? प्रत्याख्यानस्य फलं किमिति प्रश्नः उत्तरयति-"संजमफले " संयमफलम्-कृत प्रत्याख्यानस्य संयमो भवतीति भावः। 'से णं भंते ! संजमे किं फले' तत् खलु भदन्त ! संयमः किं फलः संयमस्य फलं किमिति प्रश्नः उत्तरयति-'अगण्हयफले' अनासवलः संयमः प्रभु कहते हैं कि (पच्चक्खाणफले ) विज्ञान का फल प्रत्याख्यान होता है । तात्पर्य यह है कि जिस आत्मा में विशेष ज्ञानरूप-हेयोपादेय विज्ञानरूप ज्ञान उत्पन्न होता है ऐसी वह आत्मा प्राणातिपात आदि पापों से दूर हो जाता है-अर्थात्-वह प्राणातिपात आदि क्रियाओं को नहीं करता है, यही विज्ञान का फल उसे प्राप्त हो जाता है ! ( से णं भंते ! पच्चक्खाणे किं फले ? ) हे भदन्त ! प्रत्याख्यान का क्या फल है ? तो इसे समझाते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (संजम फले) ऐसे मनुष्य को कि जो पाप प्रवृत्ति का प्रत्याख्यान कर चुका है उसको संयमरूप फल की प्राप्ति होती है-प्रात्याख्यान का फल जो संयम है वह उसे प्राप्त होता है, पायमय प्रवृत्ति से दूर रहना यही संयम हैसो यह स यम ऐसा आत्मा को स्वतः स्वभाव प्राप्त हो जाता है। (से गं भंते ! संजमे किं फले) हे भदन्त ! संयम प्राप्त हो जाने पर भी उसका फल उस आत्मा को किस रूप में पास होता है ? तब इसके समाधानार्थ હે ભદન્ત ! વિજ્ઞાનનું શું ફળ મળે છે ? ત્યારે મહાવીર પ્રભુ જવાબ આપે -“पच्चक्खाण फले" विज्ञान२॥ प्रत्याध्यान डाय छे. ४वान तात्पय એ છે કે જે આત્માની અંદર ઉપાયદેયના વિવેક રૂપ વિશિષ્ટ જ્ઞાન ( વિ જ્ઞાન) ઉત્પન્ન થાય છે. તે આત્મા પ્રણાતિપાત આદિ પાપને પરિત્યાગ કરે છે. એટલે કે તે પ્રાણાતિપાત આદિ કિયા કરતો નથી, વિજ્ઞાનનું એ ફળ तेने भने छ. “से गं भंते पच्चक्खाणे कि फले ? " महन्त ! अत्याध्यानन ३० भणे छ १ महावीर प्रभु ४ छ ॐ " संजम फले" प्रत्याभ्यान કરનાર વ્યક્તિને સંયમની પ્રાપ્તિ થાય છે-પા૫ પ્રવૃત્તિને પરિત્યાગ કરનાર વ્યક્તિને સંયમરૂપ ફળની પ્રાપ્તિ થાય છે. પાપપ્રવૃત્તિથી દૂર રહેવું એનું નામ જ સંયમ કહેવાય છે. એવા આત્માને સ્વાભાવિક शत सयम पास थाय छे. “से भंते ! संजमे कि फले " 3 महन्त! સંયમનું કેવા પ્રકારનું ફળ સંયમી આત્માને મળે છે? મહાવીર પ્રભુ તે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨