Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टी० श०२ उ०९ सू० १ समयक्षेत्रनीरूपणम् १००५ यक्षेत्रम् कालश्च समयक्षणाहोरात्र-मासपक्ष-ऋतुअयन संवत्सरादिरूपो दिनकरगत्यभिव्यंग्यो मनुष्यक्षेत्रे एव भवति नान्यत्र-मनुष्यक्षेत्रादन्यत्र न सूर्यस्य सञ्चारो भवतीति अतो यावत्पर्यन्तं सूर्यस्य गतिस्तावदेव कालव्यवहारो जायते कालोपलक्षितत्वात् क्षेत्रं समयक्षेत्रमिति । एवं जीवाभिगम वत्तव्वया नेयव्या ' एवं जीवाभिगमवक्तव्यता नेतव्या ( ज्ञातव्या) सर्वमत्र जीवाभिगमसूत्रप्रतिपादित दिशैव ज्ञातव्यमिति जीवाभिगमवक्तव्यता चैवम् ' एगं जोयण सयसहस्सं आ. यामविक्खमेणं' इत्यादि एकं योजनशतसहस्रमायामविष्कंभेण इत्यादिकं सर्वमत्र विज्ञेयम् । कियत्पर्यन्तं जीवाभिगमवक्तव्यता ज्ञेया ? तत्राह-" जाव अभितरं तीन भेदो से युक्त जो क्षेत्र हैं-वे समयक्षेत्र शब्द से व्यवहृत हुए हैं। समय, क्षण, अहोरात्र, मांस, पक्ष, ऋतु, अयन, संवत्सर आदि रूप जो काल है कि जो सूर्यकी गति से जाना जाता है वह मनुष्यक्षेत्र में ही है दूसरे क्षेत्रों में नहीं है, क्यों कि मनुष्य क्षेत्र से अन्यत्र क्षेत्रों में सूर्य गति नहीं करते हैं । इसलिये जहांतक सूर्य की गति है वहीं तक काल का व्यवहार होता है। इसलिये इस काल से उपलक्षित क्षेत्र समय क्षेत्र है, ऐसा जानना चाहिये । (एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्वा) इस तरह जीवाभिगम की वक्तव्यता कहनी चाहिये, अर्थात्-जीवाभिगम सूत्र में जिस प्रकार से यह विषय प्रतिपादन किया गया है उसी प्रकार से यहां पर यह विषय प्रतिपादित कर लेना चाहिये, जीवाभिगम कि वक्तव्यता इस प्रकार से है-(एगें जोयणसय सहस्सं आयामविक्खंभेणं) एकलाख योजन का आयाम और विष्कंभ है इत्यादि सब यहां जानना चाहिये, जीवाभिगमसूत्र की वक्तव्यता ત્રણ ભેદેથી યુક્ત જે ક્ષેત્ર છે તે ક્ષેત્રને સમય ક્ષેત્ર કહે છે. સમય, ક્ષણ, हिवस-रात्रि, भास, पक्ष, ऋतु, अयन, सवत्स२ २मा ३५ २ ण छे, ते સૂર્યની ગતિથી જાણી શકાય છે અને તેનું અસ્તિત્વ મનુષ્યક્ષેત્રોમાં જ છેઅન્ય ક્ષેત્રોમાં નથી, કારણ કે મનુષ્યક્ષેત્ર સિવાયનાં ક્ષેત્રમાં સૂર્ય ગતિ કરતો નથી. તેથી જ્યાં સુધી સૂર્યની ગતિ છે ત્યાં સુધી કાળને વ્યવહાર થાય છે. તેથી જ તે કાળથી ઉપલક્ષિત ક્ષેત્રને સમયક્ષેત્ર કહે છે
(एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयवा) निगमसूत्रमा २ विषय વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. તે અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ જીવાભિગમ સૂત્રમાં मा प्रमाणे वर्णन युछे-(एगौंजोयणमयसहस्सं आयामविक्ख भेणं) मे साम
જનની તેની લંબાઈ અને પહોળાઈ છે “ઇત્યાદિ સમસ્ત કથન અહીં લેવું જોઈએ. આ વિષયનું પ્રતિપાદન કરવા માટે જીવાભિગમ સૂત્રમાંથી ક્યા સુધી વર્ણન
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨