Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० ७ सू० १ देवस्वरूपनिरूपणम् साणेसु णं भंते कप्पेसु विमाणा किं संठिया पण्णत्ता गोयमा ! जे आवलिया पविट्ठा वट्टा, तंसा चउरेसा. जे आवलिया बाहिरा ते णाणा संठिया" इति सौधर्मेशानयोः खलु भदन्त ! कल्पयोः विमानानि कि संस्थितानि प्रज्ञप्तानि गौतम ! यानि आवलिकापविष्टानि तानि वृत्तानि व्यस्राणि चतुरस्राणि यानि आवलिका बाह्यानि तानि नानासंस्थानानि इति, उक्तानामेवार्थानामवशिष्टमतिदिश. माह-" जीवाभिगमे जाव वेमाणि उद्देसो भाणिअब्बो सयो" जीवाभिगमे यावत् की ऊंचाई का प्रमाण ग्यारह सौ ग्यारह सौ योजन का है। ( एवं संठाणं) इसी प्रकार से विमानों का आकार भी कहना चाहिये, वह इस प्रकार से है-(सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा किं-संठिया पण्णत्ता) हे भदन्त ! सौधर्म और ईशानकल्पों में विमानों का आकार कैसा है ? (गोयमा! जे आवलिया पविट्ठा ते चट्टा, तंसा, चउरंसा, जे आवलिया बाहिरा ते णाणा संठिया ति) हे गौतम ! जो विमान आव. लिकाप्रविष्ट हैं-हारबंधरूप है वे गोल हैं,त्रिकोण हैं, चौखूटे हैं। और जो विमानआवलिकाप्रविष्ट नहीं हैं वे अनेक आकार वाले हैं। अब इस कथन से और भी जो विमान संबंधी कथन बाकी रह गया है उसको बताने के निमित्त सूत्रकार कहते हैं कि-(जीवाभिगमे जाव माणिय उद्देसो भा णियव्यो सव्वो) विमानों का प्रमाण, विमानों का वर्ण, विमानां की कांति, और विमानों का गंध आदि विषय जानने के लिये जीवाभिगम
याई ११००-११०० मशियारसे। मनियारस। यो प्रमाण छ. ( एवं सठाण) से प्रभारी विमानान ५ ४ न. ते मारे। मा प्रभार छ (सोहम्मीसाणेसु ण भंते ! कप्पेसु विमाणा किं संठिया पण्णत्ता !) હે ભદન્ત! સૌધર્મ અને ઇશાનકલ્પમાં વિમાનને આકાર કે છે (गोयमा! जे आवलिया पविट्टा ते वट्टा, तंसा, चउरसा, जे आवलिया बाहिरा ते णाणा सठिया ति ) 3 गौतम ! 7 विमान माविमा (२५५) छे તે ગેળ, ત્રિકોણ અને ખૂણ છે. પણ જે વિમાને આવલિકા પ્રવિષ્ટ નથી, તે અનેક આકાર વાળાં છે. હવે વિમાન વિષે આ સિવાનું જે વર્ણન माडी छे ते ४ाने भाटे सूत्रा२ ४ छ है (जीवाभिगमे जाव वेमाणिय उसो भाणियव्वो) विमानानु प्रभा, विमानाना , विमानानी ति, વિમાનોની ગંધ આદિ વિષય જાણવાને માટે જીવાભિગમ સૂત્રને વૈમાનિક
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨