Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे रायगिहे नयरे" अहं युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् भवदाज्ञया भिक्षार्थ राजगृहे नगरे गतवान् “ उच्चनीच मज्झिमाणि कुलानि घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजणसदं निसामेमि" उच्चनीचमध्यमानि कुलानि गृहसमुदानस्य भिक्षाचर्या यै अटन् बहुजनशब्दं निशामयामि शृणो. मीत्यर्थः ‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुंगियाए नयरीए बहिया पुप्फवइए चेइए पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो समणोवासएहिं इमाई एयारूवाई वागरणाईपुच्छिया' एवं खलु देवानुप्रिया ! तुङ्गिकाया नगा वहिः पुष्पवतिके चैत्ये पार्थापत्यीयाः स्थविरा भगवन्तः श्रमणोपासकैरिमानि एतद्रूपाणि व्याकरणानि पृष्टाः " संजमेणं भंते ! किं फले ? तवेणं भंते ! किं फले ? तं चेव जाव सच्चेण भदंत । (अहं तुम्भेहिं अब्भणुग्णाए समाणे ) मैं आप से आज्ञा प्राप्त कर (रायगिहे नयरे ) आज राजगृह नगर में गया था । ( उच्चनीय मज्झिमाणि कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजणसहनिसामेमि) वहां पर उच्च, नीच, मध्यम कुलों में शास्त्रविहित विधि के अनुसार जब मैं भिक्षा ग्रहण के निमित्त एक घर से दूसरे घर पर पर्यटन कर रहा था उस समय मैंने अनेक मनुष्यों के मुख से ऐसा सुना-(देवाणुप्पिया एवं खलु ) हे देवानुप्रिय ! इस प्रकार ( तुगियाए नयरीए बहिया) तुंगिका नगरी के बाहर ( पुप्फवहए चेहये) पुष्पवतिक चैत्य-उद्यान में (पासावच्चिजा) पार्श्वनाथ प्रभु के सन्तानिक (थेरा भगवंतो) स्थविर भगवन्तों से (समावासएहिं ) श्रमणोपासकों ने (इमाई एयारूव) इन इस प्रकार के (वागरणाइ) प्रश्नों को (पुच्छिया) पूछा है। (संजमेणं भंते ! किं फले, तवेणं भंते ! किं फले,) हे भदन्त ! Bधु-" एवं खलु भंते !" 3 महन्त ! — अहं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे " मापनी भाशा साधने हुं मारे " रायगिहे नयरे " २७ नगरमा गयो डतो. “ उच्च नीच मज्झिमाणि कुलाई घरसमुदायणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजण सई निसामेमि" त्यांच्य, नीय, भने मध्यम जोमां, शास्त्रोत વિધિ પ્રમાણે ભિક્ષા લેવાને માટે જ્યારે એક ઘરેથી બીજે ઘરે પર્યટન કરી २हो तो, त्यारे में मन सोहीने भामा प्रमाणे पात सामजी -" देवा णुप्पिया” “ एवं खलु " देवानुप्रियो ! "तुगियाए नयरीए बहिया'' तुनिया नगरीनी मा२ " पुप्फवइए चेइए" पुपति शत्यमा “पासावच्चिाज्जा" पाश्वनाथ भगवानना प्रशिष्य “थेरा भगवंतो" स्थविर मरावतीने “समणो वासरहिं" श्रमापासी “ इमाइं एयारूवाई" मा आना-नीय प्रमाणे "बागरणई" प्रश्नो (पुच्छिया) पूछया.- (संजमेण भते ! किं फळे तवेणं भंते !
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨