Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे एवमवादीत् नमोऽस्तु खलु अहेभ्यो यावत् भगवद्भयो संप्राप्तेभ्यः नमोस्तु श्रमणाय भगवते महावीराय यावत् सप्ताप्तुकामाय वन्दे खलु भगवन्तं तत्र गतम् इहगतः पश्यतु मां भगवान् तत्रगत इहगतमितिकवा वन्दते नमस्यति पन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत् पूर्वमपि मया श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यांति के सर्वः करके पर्यकासन से विराजमान हो गये। (करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावतियं मत्थए अंजलि कडु एवं वयासी) पर्यकासन से विराजमान होकर दशनख सहित दोनों हाथों को अंजलि के रूप में जोड़कर उन्हें मस्तक पर लगाया और लगा कर फिर इस प्रकार कहा (नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं) अहंत भगवंतों को मेरा नमस्कार हो जो आदिकर यावत् सिद्धिगति नाम के स्थान को प्राप्त हो चुके हैं तथा ( नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स ) सिद्धिगति को प्राप्त करने वाले श्रमण भगवान महावीर को मेरा नमस्कार हो । (चंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इह गए ) यहां पर रहा हुआ मैं वहां पर विराजमान भगवान् महावीर को मैं नमस्कार करता हूं (पासउ मे भगवं तत्थगए इहगयंति) वहां विराजमान श्रमण भगवान महावीर वहां रहे हुए मुझे देखें । (त्तिकटु वंदइ नमसइ) ऐसा कहकर उन्हों ने श्रमण भगवान् महावीर को वंदना की-उन्हें नमस्कार किया ( वंदित्ता नमंसित्ता) वंदना नमस्कार करके ( एवं वयासी) फिर उन स्कन्दक अनगार ने ऐसा पत्तिय-मत्थए अंजलिं कटु एव वयासी ) पर्यसने मेसीन ४२ नम सहित બને હાથને અંજલિરૂપે જોડીને, તેમને મસ્તક પર બેઠવીને તેઓ આ प्रभारी माया-( नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं) सिद्ध गति પ્રાપ્ત કરનાર અહંત ભગવંતને મારા નમસ્કાર હે. (અહી સિદ્ધિગતિ पर्यन्तना समय ५४ अड ४२वे नये ) " नमोस्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकाभस्स " सिद्विशतिने भविष्यमा प्रा२ना२। श्रम भगवान महावीरने मारा नमा२ डी." वंदामि णं भगवत तत्थगय इहगए" मडी २डेसी हु त्या वित मान मडावीरने नमः४२ ४३ :( पासउ मे भगवं तस्थगए इह गयंति) त्या वि२ता मडावी२ लगवान या २॥ २६॥ भने निडाणे. (त्ति कटु वंदइ नमसइ) 0 प्रभारी डीन तम श्रम सगवान महावीरने ! ४२१, नम२४२ ४ा. (वंदित्ता नमंसित्ता ) ! नम२३.२ ४शन ( एवं वयासी ) l प्रमाणे माया (पुबि पि मए समणस्स
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨