Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे ___टीका-"मणुस्स पंचेंदिय तिरिक्खजोणियवीए णं भंते " मनुष्यपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकबीजं खलु भदन्त ! " जोणियन्भूए केवइयं कालं संचिट्ठइ" योनिक भूतं कियन्तं कालं संतिष्ठते ? मनुष्याणां पञ्चन्द्रियतिरश्चाश्च सम्बन्धिबीज योनिगतं कियत्काल पर्यन्तं योनिभूतं सत् तिष्ठतीति प्रश्नः भगवानाह-गोयमा' इत्यादि । ' गोयमा' हे गौतम ! 'जहण्णे णं अंतो मुहुत्तं' जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उक्कोसेणं बारसमुहुत्ता" उत्कृष्टेन द्वादशमुहर्त्तान् योनिस्थितबीजरूपेणतीष्ठतीति॥सू-४
'मणुस्स पंचेन्दिय ' इत्यादि।
सूत्रार्थ-( मणुस्स पंचेन्दियतिरिक्खजोणियबीए णं भंते जोणियम्भूए केवइयं कालं संचिंटइ ) हेभदन्त ! मनुष्य की स्त्री की योनि में मनुष्यका और पंचेन्द्रियतिथंच की स्त्री की योनि में पंचेन्द्रिय तिर्यच का प्रक्षिप्त हुआ वीर्य कितने कालतक योनिभूत रहता है ? ( गोयमा! जहण्णेणं अन्तो मुहूत्तं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ता) हे गौतम ! मनुष्य का मनुष्य स्त्री की योनि में और पंचेन्द्रिय तिर्यंच का पंचेन्द्रियतिथंच स्त्री योनि में प्रक्षिप्त हुआ वीर्य कम से कम अन्तर्मुहूर्ततक और अधिक से अधिक बारह मुहूर्ततक योनिभूत रहता है। ___टीकार्थ-स्पष्ट है । इसका तात्पर्य यह है-कि गाय आदि पंचेन्द्रियतिर्यंचनियों की तथा मनुष्यस्त्री की योनि में प्रक्षिप्त हुआ वीर्य कम से कम अन्तर्मुहूर्ततक और अधिकसे अधिक बारह मुहूर्ततक जीव की उत्पत्ति करने वाला हो सकता है ॥ ४ ॥
‘मणुस्स पंचेदिय ' त्या
सूत्रार्थ- ( मणुस्सपंचेदियतिरिक्खजोणियवीए णं भंते जोणियब्भूए ण केवइयं कालं संचिदइ) महन्त! मनुष्यनी स्त्रीनी योनिमा गये पुरुषर्नु, અને પચેન્દ્રિય તિર્યની સ્ત્રી (માદા)ની યોનિમાં ગયેલું પંચેન્દ્રિય તિર્યંચનું वीय 20 १७॥ सुधी तेभनी योनिभा २ छ ? ( गोयमा ! जहण्णेणं अंतो. मुहूत्त उकोसेणं बारमुहुत्ता) 3 गौतम ! मनुष्य स्त्रीनी योनिमा गये મનુષ્યનું વીર્ય તથા પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ સ્ત્રીની નિમાં ગયેલું પંચેન્દ્રિય તિયચનું વીર્ય ઓછામાં ઓછું એક અંતર્મુહૂર્ત સુધી અને વધારેમાં વધારે બાર મુહૂર્ત સુધી એનિમાં રહે છે.
ટીકાર્ય–અર્થ સ્પષ્ટ છે. તાત્પર્ય એ છે કે ગાય આદિ પંચેદ્રિતિયચ જાતિની માદાની નિમાં ગયેલું વીર્ય તથા મનુષ્ય સ્ત્રીની યોનિમાં ગયેલું વિર્ય ઓછામાં ઓછા એક અંતમહૃર્ત સુધી અને વધારેમાં વધારે બાર મુહૂર્ત સુધી જીવની ઉત્પત્તિ કરી શકે છે. ૪
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨