Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे मैरुच्छ्वासनिःश्वासैः व्युत्सृजामि इति कृत्वा संलेखना जोषणा जुषितः भक्तपानप्रत्याख्यातः पादपोपगतः कालमनवकांक्षन् विहरति । ततः खलु स स्कन्दकोऽनगारः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य तथारूपाणां स्थाविराणामंतिके सामायिकादीनि एकादशांगान्यधीत्य बहु प्रतिपूर्णानि द्वादश वर्षाणि श्रामण्य हूं । (ज पि य णं इमं सरीरं इ8 कंतं पियं जाव फुसंतु तिकडु एवं पि णं चरमेहिं ऊसास नीसासेहिं वोसिरामि ) तथा जो यह मेरा शरीर कि जो मुझे पहिले इष्ट था कान्त था प्रिय था-यावत इसे किसी भी प्रकार के उपसर्ग और परीषह पीडित न करें इस भावना से मैंने इस को सुरक्षित रखा था सो अब चरम उच्छ्वास निःश्वासों सेअर्थात् मरने के समय में इसको भी छोड़ता हूं (त्तिकटु ) इस प्रकार विचार करके उन स्कन्दक अनगार ने ( संलेहणा असणा झूसिए) काय और कषायको कृश करने वाली संलेखना को आदर पूर्वक धारण कर लिया। (भत्तपाणपडियाइक्खिए ) भक्तगन का प्रत्याख्यान कर दिया ( पाओवगयं कालं अणवकंखमाणे विहरइ ) पादपोपगमन संथारे में स्थिर बन गये और मरणाशंसा और जीविताशंसा से बिलकुल रहित हो गये। - (तएणं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अतिए सामाझ्यनाइयाइं एक्कारसअंगाई अहिन्जित्ता बहुपडि पुण्णाई दुवालसवासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता ) इस प्रकार उन णं इमं सरीरं इ8 कंतं पिय जाव मा फुसंतु त्ति कटु एयपि णं चरमेहि ऊसास नीसासेहिं वोसिरामि ) A1 भाइ शरी२ २ पडत भने इष्ट હતુ, કાન્ત હતું પ્રિય હતું. અને કોઈ પ્રકારના પરીષહ અને ઉપસર્ગ તેને પીડા પહોંચાડી ન શકે એવી ભાવનાથી હું જે શરીરની રક્ષા કરતું હતું હવે ચરમ ઉચ્છવાસ નિઃશ્વાસ લેતી વખતે એટલે કે મરણ કાળે તેને પણ डु त्या ४३ छु.. (त्ति कटु) प्रमाणु विया२ ४रीने २४६, मारे ( संलेहणा झुमणा झूसिए) या मने पायाने क्षी ४२नारी ससेमना (सथा। ) माह२५ धारण ४यो. ( भत्तपाणपडियाइक्खिए) मतान ग्यारे ४२ना माहाना प्रत्याभ्यान या. ( पाओवगय कालं अणवकंखमाणे विहरइ) पायोमन सथामा स्थि२ २४ गया. अने भ२॥नी माक्षा
वननी 24tsiक्षाथी २डित पनी गया. ( तएणं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेरोणं अतिए समाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता) मा रीत ते २७४४ सारे श्रमाय मगवान महावीरन। मेवा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨