Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे वि य ते खंदया' यो पि च ते स्कन्दक ! 'अयमेयारूवे' अयम् एतद्रपः 'अज्झ. थिए-चिंतिए कप्पिए पत्थिए मणोमए संकप्पे समुप्पज्जित्था ' आध्यात्मिकः, चिन्तितः कल्पितः प्रार्थितो मनोगतः संकल्पः समुदपद्यत-'किं स अंते लोए अणं ते लोए ' किं सान्तः लोकः अनंतः लोकः, हे स्कन्दक ! पिङ्गलकेन पृष्टस्य तब मनसि एवंविधो विचारः समुत्पन्नः यदयं लोकः सांतः अनंतो वेति तस्स वि य णं अयं अटे' तस्यापि च खलु अयमर्थः 'एवं खलु मए खंदया चउबिहे लोए पन्नत्ते ' एवं खलु मया स्कन्दक ! चतुर्विधो लोकः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा' तद्यथा -'दबओ खेत्तओ कालो भावओ' द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतो भावतश्व, तत्र यथार्थ समाधान निमित्त मैं आपके पास आया हूं। स्कन्दक की इस बात को सुनकर प्रभुने कहा कि "खंदया!" हे स्कन्दक सुनो "ते" तुम्हे "जे वि" जो भी पिंगलक निर्ग्रन्थ के पूछने पर अयमेयारूवे यह इस प्रकार का " आज्झथिए" आध्यात्मिक, 'चिंतिए' चिन्तित, 'पथिए ' प्रार्थित, 'काप्पिए' कल्पित 'मनोगए ' मनोगत 'संकप्पे' संकल्प 'समुप्पजित्था उत्पन्न हुआ है कि " किं स अंते लोए अगंते लोए' लोक क्या अन्त सहित है कि अन्तरहित है ? सो " तस्स वि य णं अयं अहे पण्णत्ते " इसका विचार सैद्धान्तिक दृष्टि से इस प्रकार किया गया है, सुनो-"खंदया” हे स्कन्दक ! 'मए चउब्धिहे लोए पण्णते" मैंने लोक की चार प्रकार से प्ररूप गा की है-"तंजहा" जो इस प्रकार से है-“दव्व ओ खेत्तओ कलओ भावओ" द्रव्य से, क्षेत्र
પ્રભો અપની વાત સાચી છે. અને તેને યથાર્થ ઉત્તર જાણવાને માટે જ હું આપની પાસે આવ્યો છું. સ્કન્દકની તે વાત સાંભળીને મહાવીર પ્રભુએ તેને धुं- “खंदया !" २४४४! "ते" तभने “जे वि" पिंस मिथे २ प्रश्न पूछयां छे तेने सीधे " अयमेयारूवे " मा प्रा२नी " अज्झस्थिए " भाध्याभि, “चिंतिए " यिन्तित, “ पत्थिए " प्रथित, “कप्पिए " पित "मणोगर " मनात " संकप्पे" स४८५ " समुप्पज्जित्था " अत्पन्न थयो छ
किं स अते लोए अणते लोए ?" a४ मतसहित छ , अन्तरडित छ ? तो " तस्स वि य ण अयंअढे पण्णते" तेनी २ ते मथ ४२वामा म व्यो -"खदया !" ! “मए चउविहे लोए पण्णते" में सोनी थार ५४४२ ५३५। ७री छे. (त' जहा) ते ! प्रभारी छे “दव्वओ खेतओ कोलओ भावओ" (१) द्रव्यानी (२) क्षेत्रनी, (3) नी भने (४) सानी अपेक्षा में भारीते या२ रे नी ५३५४॥छे. " दव्यओ णं एगे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨