Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका २० २ उ० १ सू० १४ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ७०३ अतएव ' उदत्तेणं' उदात्तेन उच्चपरिणामस्य स्थैर्यात् । एवं तु सामान्येनापि स्यादत आह 'उत्तमेणं ' उत्तमेन मलिनमावराहित्यात् एतत्तु सस्पृहमपिस्यादतमाह उदारेण" औदार्येण, निस्पृहत्वातिशयात् । एतादृशं सम्भाव्यपि भवेदत आह'महाणुभावेण ' महानुभावेन लोकातिशायिप्रभावजनकत्वात् । एतादृशेन तपः कर्मणा " सुक्के " शुष्कः शोणितरहितत्वात् " लुक्खे" रूक्षः क्षुधावशेन रूक्षी भूतखात् " निम्मंसे" निर्मासः यथेष्टाहाराभावेन शुष्कमांसत्वात् , अतएव उपशमन का कारण होने से यह (मंगललेणं ) स्वयं मंगलरूप था। तथा सम्यक आराधना से शोभासंपन्न होने के कारण यह तप कर्म (सस्सि. रीएणं) सश्रीक था। इस तप कर्म को आचरित करते समय स्कन्दक अनगार के परिणाम इसकी आराधना करने में उत्तरोतर वृद्धिसंपन्न होते रहते थे इसलिये यह तप कर्म (उदग्गेणं ) उदाउन्नत था। इसकी
आराधना में उच्चपरिणामों की स्थिरता होने से ( उदत्तेणं) उदात्त था। इस नप के करने में किसी भी प्रकार से परिणामों में मलिनता नहीं
आने से यह ( उत्तमेणं) उत्तम था। इस तप कर्म में निस्पृहता की पराकाष्ठा होने के कारण यह (उरालेणं) उदार था। यह स्कन्दक द्वारा आचरित तपाकर्म सामान्यप्रभाववाला नहीं था किन्तु (महाणुभावेणं) लोकातिशायी प्रभाव का जनक था। ऐसे तपकर्म के निरन्तर करने से स्कन्दक अनगार का शरीर खून रहित होने के कारण काष्ठ के जैसा शुष्क हो गया था। भूख के प्रभाव से वह बिलकुल रूखा हो गया था। (निम्मंसे ) यथेष्ट आहार के अभाव के कारण वह मांस रहित हो गया ते (मंगल्लेण) 'भ७२१३५' तु, सभ्य साधनाथा शामायभान पाथी ते त५:भ (सस्सिरीएण) (सी) उतु, या त५:
४ ४२ती मते २४६४ અણુગારનાં પરિણામ તેની આરાધના કરવામાં ઉત્તરોત્તર વૃદ્ધિ પામતાં રહેતાં हता, तथा ते तप:म (उद्ग्गेण) 6-उन्नत तु, तेनी माराधनामा
श्य परिणाभानी स्थिरता पाथी ते ( उदत्तेण ) हात्त हेतु मा तपनी આરાધના કરતાં પરિણામમાં કઈ પણ પ્રકારની મલિનતા પ્રવેશવાથી તે ( उत्तमेण) उत्तम तु. ते तपमा निस्पृडतानी ५२।४18ता पाथी ते (उरालेण) SE२ तु. ते त५ सामान्य प्रभावामु नातु ५ ( महाणुः મvi અલૌકિક પ્રભાવનું જનક હતું આ પ્રકારની તપસ્યા નિરંતર કર્યા કરવાથી સ્કન્દક અણગારનું શરીર લેહીથી રહિત થઈ ગયું હતું તેથી તે કાષ્ઠ જેવું શુષ્ક લાગતું હતું. ભૂખના પ્રભાવથી તે તદ્દન રુક્ષ થઈ ગયું હતું (निम्मसे) मावश्या माडाने समाव तेमनु शरी२ मांसहित 25 गयु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨