Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२.३० १ सू० १५ स्कन्दकचरित निरूपणम्
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भाषां भाषमाणो ग्लायामि भाषां भाषिष्ये इति ग्लायामि इति " जाव एवामेत्र अपि " यावदेवमेवाहमपि अत्र यावत्पदेन तद् यथा नाम काष्ठशकटिका तिलशकटिका भाण्ड टिका एरण्डकाष्ठशकटिका अंगारशटिका उष्ण दत्ताशुष्कासवी सशब्दं गच्छति सशब्दं तिष्ठति इत्येतस्य पदजातस्य ग्रहणं भवति तद्वदहमषि " ससद्दं गच्छामि " सशब्दं गच्छामि। काष्ठादिपूरितशकटादिवत् अहमपि सशब्दं गच्छामि इत्यर्थः " ससदं चिट्ठामि " सशब्दं तिष्ठामि अस्थि संघर्षजन्यशब्दयुतस्तिष्ठामीत्यर्थः " तं अत्थितामे " तदस्तितावन्मे ' उहाणे ' उत्थानम् तदेवमपि सर्वथा शारीरिक बलरहितस्यापि तावन्मे उत्थानादि न सर्वथा क्षीणमिती " कम्मे बले वीरिए पुरिसकार परकमे" कर्म वलम् वीर्यम् पुरुषकारपराक्रमोऽस्ति तं तावता मे अत्थि " तत् यावत् तावत् मे अस्ति " उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए फलियों से मिट्टी के भोंडों से भरी हुई गाडी खड खड आवाज करती हुई चलती है और ठहरती है ( एवामेव अपि) उसी प्रकार से मैं भी अस्थिमात्रावशिष्ट होने के कारण ( ससद्दं गच्छामि ) उनके संघर्ष से होने वाले शब्द से युक्त होकर चलता हूं और ( ससद्दं चिट्ठामि ) शब्द से युक्त होकर ठहरता हूं इस प्रकार से यह मेरे शरीर की दशा हो रही है अर्थात् - मैं शारीरिक बल से इस समय सर्वथा रहित हो रहा हूं " फिर भी मुझ में उत्थानादिक कर्म सर्वथा क्षीण नहीं हुए हैं" यही बात दिखाने के लिये सूत्रकार कहते हैं कि वे स्कन्दक अनगार विचारते हैं कि इस स्थिति में भी अभीतक मुझ में " तं अस्थि ता मे उट्ठाणे " उत्थान है " कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे " कर्म है, बल है,
યુક્ત થઈ જાઉં છું. “ ખેલવું પડશે ” એવા વિચારથી પણ મનમાં ગ્લાનિ અનુભવું છું. અને સૂકાં કાઇ, સૂકાં પાન, સૂકી તલ શિંગા, કે માટીનાં વાસણાથી ભરેલી ગાડી જેમ ખટ--ખટ અવાજ કરતી ચાલે છે કે ખટ-ખટ અવાજ ४२ती उली रहे छे " एवमेत्र अहंपि " मेन प्रमाणे भारा शरीरमा पशु मात्र डाउन होवाने आरो' ससद्दं गच्छामि' हुँ' भट-जट वान रो यातुं छु - ( डाडांना घर्ष शुथी ते आवाज थतो होय छे. ) " ससह चिट्ठामि " અતે ઉઠતાં તથા બેસતાં પણ ખટ-ખટ અવાજ થાય છે. આ રીતે હું શારી રિક રીતે નિખળ થઈ ગયા છે, મારામાં શારીરિક શક્તિ તે બિલકુલ રહી જ નથી. છતાં પણ ઉત્થાન આદિ કર્મ કરવા જેટલી શક્તિ તે હજી પણ भाडी रही डती ते ताववाने सूत्रअर उडे छे - " त अत्थि तामे उ २६-४ अशुगार विचार ४२७ उत्थान छे, " कम्मे,
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भारामां
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨