Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० १३ स्कन्दकपरितनिरूपणम् ५७७ तु आसीदेव भवत्येव भविष्यति च नञ् द्वयस्य अस्तित्वरूपपकृतार्थबोधकत्व नियमात् तथा च सर्वथैवासीत् भवति भविष्यति चेत्यर्थः, एतदर्थमेव विधिमुखेन स्पष्टयति- भविसु य भविस्सइ य' अभूत् चायलोकः पूर्वमपि, भवति चेदानीम् , भविष्यति चानागतकालेपि, यतः पूर्वमपि लोक आसीदिनानोमपि वर्ततेऽनागत कालेऽपि स्थास्यति अत एव 'धुवे ध्रुवः अचलखोत् , स चानियतरूपोपि कदाचित् स्यात् अत आह-णियए' नियतः एक स्वरूपत्वात् नियतरूपः कादाचित्कोपि पदार्थः स्यादत आह-'सासए ' शाश्वतः प्रतिक्षणं सद्भावात् स च नियतकालापेक्षयापि स्यादत आह-' अक्खए ' अक्षयः क्षयरहितः अविनाशिखात् अक्षयश्च है किन्तु भूतकाल में लोक था वर्तमानमें वह है, और भविष्यत् में वह रहेगा। तीनों कालो में लोक का अस्तित्व है । यह लोक था है और रहेगा। इसी बात को सूत्रकार विधिमुख से प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि-'भविसु भवइ, भघिस्सइ' यह लोक कालकी अपेक्षा पहिले था इस समय है और भविष्यत् काल में रहेगा। इसलिये यह लोक-'धुवे' अचलहोने के कारण ध्रुवहै। ध्रुव होकर भी वह कदाचित् अनियतरूपवाला भी हो सकता है तो इस आशंका की निवृत्ति के लिए सूत्रकार कहते है कि वह ऐसा नहीं है किन्तु-"नियए" वह लोक एकस्वरूप. वाला होने के कारण नियत है। नियतरूपवाला भी कोई एक पदार्थ कादाचित्सभी हो सकता है सो ऐसा वह लोक नहीं है कि नियत स्वरूपवाला होकर भी कादाचित्कता उसमें हो-वह तो "सासए" शाश्वत है-प्रतिक्षण में उसका सद्भाव रहता है। प्रतिक्षण में पदार्थ का सद्भाव नियतकालकी अपेक्षासे भी माना जा सकता है अतः वह लोक ન હેય. પણ ભૂતકાળમાં લેકનું અસ્તિત્વ હતું, વર્તમાન કાળે છે અને ભવિ. ષ્યમાં પણ રહેશે જ ત્રણે કાળમાં લેકનું અસ્તિત્વ હોય છે. એટલે કે લેક હતે, લેક છે અને લેક હશે. એજ વાતનું સૂત્રકાર હવે હકાર વાચક વાક્ય १४ प्रतिपादन ४२ छ “ भविंसु, भवइ, भविस्सह " नी अपेक्षा सोना અસ્તિત્વને વિચાર કરવામાં આવે તો તે પહેલાં હતો, હાલમાં છે, અને ભવિ. ध्यमां ५५२री. तेथी सो “धुवे" मय डावाने ४२णे ध्रुव छ ધ્રુવ હોવા છતાં પણ તે કદાચ અનિયત સ્વરૂપ વાળા સંભવી શકે છે તે मासानु निवारण ४२॥ भाटे सूत्रधारे तेने "नियर" नियत उस छ । मे २१३५ वाणी डावाथी नियत छ. " सासए" ते शावत छ सहा तेनुं અસ્તિત્વ રહે છે. કોઈ પણ ક્ષણ એવી નથી હોતી કે જ્યારે તેનું અસ્તિત્વ ન હોય. પ્રતિક્ષણે પદાર્થને સદ્દભાવ (અસ્તિત્વ) નિયત કાળની અપેક્ષાએ પણ
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨