Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेययन्द्रिका श० २ उ० १ सू० १३ स्कन्दकचरितनिरूपणम्
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एकान्तमंतमवक्रामति एतन्मे निस्तारितं सप्तचात् पुराच हिताय सुखाय क्षेमाय निःश्रेयसायानुगामिकतायै भविष्यति, एवमेव, देवानुप्रिय ! ममाप्यात्मा एक भाण्डमिष्टकान्तप्रियो मनोज्ञो मनोऽमः स्थैर्यः, वैश्वासिकः, समतोऽनुमतो बहुमतो भाण्डकरण्डकसमानः मा खलु तं शीतं मातमुष्णं मातं क्षुधा मातं पिपासा मावं चौराः सामान वजन में हल्का और कीमत में अधिक होता है ( तं गहाय आयाए एगंतमत अवक्कमइ ) उसे लेकर स्वयं एकान्त स्थान में चला जाता है कारण कि वह इस प्रकार से सामान के बसाने के निमित्त विचार करता है - कि ( एस मे नित्थरिए समाणे पच्छापुराए हियाए सुहाए खेमाए निरसेयसाए, आणुगामियत्ताए भविस्सइ ) जो मैं इस जलते हुए घरमें से अल्प वजनवाली कीमती वस्तु को निकाल लूंगा तो वह मेरे लिये आगे पीछे हितकारक होगी, सुखकारक होगी क्षेम कारक होगी अभ्युदय ( भाग्योदय ) के निमित्त होगी और भाविवंश परंपरा के उपभोग के किमित्त होगी इसलिये वह ऐसे विचार से ऐसे सामान को जैसे भी बनता है-निकाल लेता है ( एवामेव देवाणुपिया ! मज्झ वि आया एगे भंडे इट्ठे, कंते, पिए मणुण्णे, मण मे, थेज्जे, वेस्सा सिए समए अणुमए, बहुमए, भंडकरंडगसमाणे ) इसी तरह से हे देवानुप्रिय ! मेरा भी आत्मा एक भांड है, वह मुझे इष्ट है, कांत है, प्रिय है, मनोज्ञ है, मनोम है, स्थिर : रूप है, वैश्वासिक है समत है, अनुमत है, बहुमत है और आभूषणों से भरे हुए करंडिये के समान एतमंत अवकमइ ) पोताना घरभांथी गोछा वनों या श्रीमति सामान લઈને કાઇ સુરક્ષિત-સ્થાનમાં ચાલ્યા જાય છે. કારણ કે તેના મનમાં વિચાર आवे छे (एस मे नित्थरिए समाणे पच्छा पुराए हियाए सुहाए खेमाए निस्सेयसाए, आणुगामि यत्ताए भविस्सइ) ले आा सजगतां धरमांथी हु खोछा वन्नवाणी प ભારે કીમતી વસ્તુ ખહાર કાઢીશ, તેા તે વસ્તુઓ, ભવિષ્યમાં મારે માટે હિતકારક, सुभा२४. क्षेभार, भने अल्युध्य ( लाग्योदय ) (२४ था पडशे तथा भारी ભાવી પેઢી માટે તે ઉપયાગી થઈ પડશે. આ જાતના વિચાર કરીને તે મનતા प्रयत्न उरीने डींमती वस्तुमाने मणता धरभांथी महार अढी से छे. ( एवमेव. देवाणुपिया ! मज्झवि आया एगे भंडे इट्ठे, कंते, पिए, मणुण्णे, मणामे, थेज्जे, सालिए, संमए, अणुमए, बहुमए, भंडकर 'डगसमाणे ) ४ प्रमाणे हे भगवन મારા આત્મા પણ એક એવી વસ્તુ છે કે જે મને ઇષ્ટ (ગમતી વસ્તુ ) છે, अंत छे. प्रिय छे, भनोज्ञ छे, भनोभ छे, स्थि२३५ छे. विश्वास युक्त छे, सभत छे, अनुभत छे, बहुमत छे, अने आभूषणोथी भरपूर ४२डिया समान छे. (माणं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨