Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्र न्धात् शंगारमिव शृंगारम् अतिशयितशोभासम्पन्नमित्यर्थः आभरणादि शृंगारं विनैव भगवतः शरीरं स्वाभाविकशोभासम्पन्नमेव भवतीति भावः । 'कल्लाणं' कल्याणम् कल्याणस्वरूपम् 'सिवं' शिवम् शिवमनुपद्रवं निरुपद्रवस्वरूम् , 'धन्नं' धन्यम् प्रशंसायुक्तम् ‘मंगल्लं ' मंगल्यम् मंगलस्वरूपम् ' सस्सिरीयं' सश्रीलोकोत्तरशोभायुक्तम् ' अणलंकियविभूसियं' अनलंकृतविभूषितम् मुकुटादिभिः अलंक्रियते वस्त्रादिभिर्विभूष्य ते प्रकृते चोभयोनिषेधात् अनलंकृतविभूषितम् , यद्वा-अनलङ्कृते अलङ्कारवजितेऽपि विभूषितं-विभूषासम्पन्नम् अतिशयसुन्दरशरीर ओरालं उदार प्रधान था। सिंगारं' अलंकार आदि से कृत जो शोभा उस शोभा के संबंध से शृंगार की तरह वह शरीर शृंगार वाला जैसा था। अर्थात शृंगार से युक्त होने पर जो शोभा होती है वैसी शोभा भगवान् के शरीर की थी। तात्पर्य यह कि आभरण आदि शृंगार के विना भगवान का शरीर स्वाभाविक शोभा से संपन्न था। क्यों कि भगवान का शरीर स्वभावतः प्रारंभ से ही शोभा संपन्न होता है । (कल्लाण ) भगवान का वह शरीर कल्याण स्वरूप था। कारण कि भगवान स्वयं कल्याणस्वरूप होते हैं। 'सिवं' भगवान का वह शरीर छकाय रक्षक होने के कारण निरुपद्रव स्वरूप था। (धन्नं ) प्रशंसा युक्त होने के कारण भगवान् का शरीर धन्यरूप था। (मंगलं) शिवसुखदाता होने से अथवा पापों का नाशक होने से भगवान का शरीर मंगलरूप था। ( सस्सिरीयं) अलौकिक शोभा से संपन्न होने के कारण भगवान का शरीर लोकोत्तर (अपाथिव) शोभावाला था। (अणलंकियविभूसियं) शरीर की शोभा अलंकारों से विशेष हो जाती है परन्तु भगवान के शरीर “ओरालं" (GER सौथा सु२) तु. “ सिंगारं " शुमाथी युत શરીર જેવું સુંદર લાગે છે તેવું સુંદર ભગવાનનું શરીર લાગતું હતું. એટલે ભગવાનનું શરીર એટલું બધું શોભાયમાન હતું કે આભૂષણે વગેરે
॥२ विना ५ ते अतिशय सुं४२ तु, “कल्लाणं " मावान पाते १ या २१३५ डाय छे. तेथी तेभनु शी२ ४क्ष्या ११३५ तु. “ सिवं" ભગવાન છકાયના જીવોની રક્ષા કરનાર હતા. તેથી તેમનું શરીર દરેક જીવન भाट निरुपद्रव ३५ तु. “धन्नं "प्रशस्त डावाने सीधे ते शरीर धन्य३५ हेत. " मंगलं" शिसुमहात पाथी अथवा पापोनु नाशती पाथी लगवाननु शरी२ मा ३५ हेतु “ सस्सिरीयं " मी शालापाणु पाथी भगवाननु २२ सोत्तर ( माथि) शमा-पाणु तु. “ अणलंकिय विभू. सिय" शरीरनी शमा माथी १धे छ. ५ सगवानना शरीरनी शाला
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨