Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे अनंता रसपर्यवाः अनन्ताः स्पर्शपर्यवाः, अनंताः संस्थानपर्यवाः, अनंतागुरुकलघुकपर्यवाः, अनंता अगुरुलघुकपर्यवाः नास्ति पुनस्तस्यान्तः ॥ ४ ॥ तदेतत् स्कन्दक ! द्रव्यतो लोकः सांतः, क्षेत्रतो लोवः सांतः कालतो लोकोऽनंतः, भावतो लोकोऽनंतः ॥ १॥ यो पि च स स्कन्दक ! यावत् सांतो जीवः अनंतो जीवः तस्यापि चायमर्थः- एवं खलु यावत् द्रव्यतः खलु एको जीवः सांतः । क्षेत्रतो गंधपज्जवा, अणंता रस पज्जवा अणंता फासपज्जवा अगंता संठाण - पज्जवा, अणंता गरुयलहुयपज्जवा, अणंना, अगुरुलहुयपज्जवा नत्थि पुण स अंते ) भाव की अपेक्षा से लोक अनंत वर्ण पर्यायरूप है, अनंत गंध पर्याय रूप, अनंत रस पर्याय रूप, अनंत स्पर्श पर्याय रूप, अनंत संस्थान पर्यायरूप, अनंत गुरु लघु पर्याय रूप, तथा अनंत अगुरु लघु पर्याय रूप है। भाव से लोक का अंत नहीं है। इस तरह से (से तं खंदगा ! दव्यओ लोए स अंते, खेतओ लोए स अंते, कालओ लोए अणंते, भावओ लोए अणते ) हे स्कन्दक द्रव्य की अपेक्षा लोक अंत सहित है, क्षेत्र की अपेक्षा लोक सान्त-अन्त सहित है । पर लोक की अपेक्षा से लोक अनन्त-अन्त रहित है, भाव की अपेक्षा से लोक अनन्त-अन्त रहित है १।।
(जे वि य ते खंदया ! जाव सअंते जीवे, अगंते जीवे, तस्स विय गं अयं अट्टे ) तथा हे स्कन्दक ! जो तुम्हें यावत् जीव के विषय में विकल्प उत्पन्न हुआ था कि जीव अन्त सहित है कि अल रहित है, उसका भी इस तरह से समाधान है को ( एवं खलु जाव दव्यओ णं एगे जीवे स लोए अणंता वण्णपज्जवा, अणता गंध पज्जवा, अणंता रसपज्जवा, अणंता फास पज्जवा, अणता गरुयल हुय पज्जवा, अणंता अगुरुलहुय पज्जवा, नस्थि पुण से अते) मने मावनी अपेक्षा सो भनत व पर्याय३५ छ, सनत गध પર્યાયરૂપ છે, અનંત રસપર્યાયરૂપ છે, અનંત સ્પર્શપર્યાયરૂપ છે, અનંત સંસ્થાનપર્યાયરૂપ છે, અનંત ગુરુલઘુ પર્યાયરૂપ છે, તથા અનંત અગુરુલઘુ पर्याय३५ छ. तथा मतडित छे. मारीत (से त्तं खंदगा ! दबओ लोए स अते, कालओ लोए, अणंते, भावओ लोए अणंते ) २४६४! द्रव्यनी અપેક્ષાએ લેક સાન્ત (અન્તયુક્ત) છે, ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ લેક સાન્ત ( અતસહિત) છે. પણ કાળની અપેક્ષાએ લેક અનંત (અંત રહિત) છે અને ભાવની અપેક્ષાએ પણ લેક અંત રહિત છે, (जे वि य ते खंदया! जाव स अते जीवे, अणते जीवे, तस्सवि य णं अयं अटूटे) ३२४६ ! तभने बना विषयमा “७१ मत सहित छ ॐ मत રહિત છે !એવી જે શંકા ઉદ્ભવી છે તેનું સમાધાન આ પ્રમાણે છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨