Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे एवमाख्याति तदेवं यावत् ये ते एरमाहुः मिथ्या ते एवमाहुः अहं पुन गौतम ! एवमाख्यामि, एवं खलु एको जीव एकसमये एकां क्रियां प्रकरोति, स्वसमयवक्तव्यतया नेतव्यम् यावद् ऐर्यापथिकी वा सांपरायिकी वा ॥ सू० ॥ ३ ॥
टीका-' अन्न उत्थियाणं भंते' अन्ययूथिकाः खलु भदन्त ! ' एवं आइक्खंति' एवमाख्यान्ति 'जाव' यावत्पदेन-' एवं भाषन्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति, एवं प्ररूपएवं ) तो क्या हे भदन्त ! यह कथन इसी प्रकार से है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जं णं ते अन्नउत्थिया) जो वे अन्यतीर्थिक (एवं आइक्खंति) ऐसा कहते हैं (तं चेव जाव जे ते एवं आहंसु ) यावत् जो उन्हों ने ऐसा कहा है (मिच्छा ते एवं आहंसु) वह उन्हों ने मिथ्या कहा है। ( अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि ) मैं तो हे गौतम ! ऐसा कहता हूं कि (एवं खलु-एगे जीवे एगसमए एक किरियं पकरेइ) एक जीव एक समय में एक क्रिया करता है। (मसमय वत्तव्वयाए णेयव्वं जाव इरियाहियं वा सांपराइयं वा) यह बात स्वममय वक्तव्यता से जाननी यावत् एक जीव एक समय में ऐर्यापथिकोअथवा साँपरायिकी क्रिया करता है।
टीकार्थ-( अन्न उत्थिया णं भंते ) हे भदन्त ! अन्ययूथिक ऐमा कहते हैं। यहां जो (जाव ) पद आया है उससे ( एवं भाषान्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति, एवं परूवयन्ति ) इन क्रियापदों का संग्रह किया गया है। एवं) तड लावन् ! तेभर्नु ते ४थन सायु छ ? ( गोयमा ! ) 3 गौतम ! (जं ते अन्नउत्थिया एव आइखंति ) ते मन्य तीर्थ मेरे ४ छ, (तं चेव जाव जे ते एवं आहेसु) ( यावत) तेभर से २ ४{ छ ( मिच्छा ते एवं आहंसु) ते तमो मिथ्या हुं छे-ते सायुनथी. ( अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि) 3 गौतम! हुमे ४ई छ : ( एव खलु-एगे जीवे एग समये एक्कं किरिय पकरे इ ) मे १ मे समये मे ४ यि ४२ छे. ( ससमय वत्तव्वयाए णेयव्यं जाव इरियावहिय वा सांपराइयं वा ) ते वात ५સમય વક્તવ્યતાથી (સ્વ સિદ્ધાંતથી) જાણવી જોઈએ કે જીવ એક સમયે ઇયપથિકી અથવા સાંપરયિકી એ બે માંથી એક જ ક્રિયા કરે છે,
Ast-" अन्नउत्थियाण भंते ! " है भगवन् अन्य भतवाडी 21 प्रभाग ४ छ, (मडी जाव (यावत्-पय-त) ५४ 43 " एवं भाषन्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति, एवं परूवयन्ति) २॥ यापहोने अड ४२पामा माया छ.) तेथे।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨