Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ ३०१० सू०३ क्रियाविषये प्रश्नोत्तरनिरूपणम् ४३३ यन्ति, किमाख्यान्तीत्याह - ' एवं खलु ' इत्यादि । ' एवं खलु एगे जीवे' एवं खलु एको जीवः, 'एगेणं समएणं ' एकस्मिन् समये ' दो किरियाओ पकरेंति ' द्वे क्रिये प्रकरोति । के ते द्वे क्रिये ? तत्राह - ' तं जहे ' त्यादि । ' तं जहा ' तद्यथा-' इरियावहियं च संपराइयं च ' ऐर्यापथिकीं च साम्परायिकीं च । तत्र ईर्यो नाम गमनम् तद्विषयः पन्थाः मार्ग इति ईर्यापथः तत्र भवा ऐर्यापथिकी, केवलका योगकारणकः कर्मबन्ध इत्यर्थः, ताम् । संपरैति = भ्रमति जीवो भवे = संसारे यैस्ते संपरायाः कषायास्तत्कारणिका या क्रिया सा सांपरायिकी क्रिया, कषायकारणकः कर्मबन्ध इत्यर्थः ताम् । 'जं समयं इरियावहियं पकरेड़ ' यस्मिन् वे क्या कहते हैं - इसको सूत्रकार ने ( एवं खलु एगे जीवे ) इत्यादि सूत्र पाठ द्वारा प्रकट किया है एक जीव ( एगेणं समएणं ) एक समय में ( दो किरियाओ पकरेंनि ) दो क्रियाएँ करता है ! वे दो क्रियाएँ कौन सी हैं - इसे ( तंजहा ) द्वारा प्रकट करने के निमित्त कहते हैं कि वे इस प्रकार से हैं - ( इरियावहियं च सांपराइयं च) एक ऐर्याfपथिक और दूसरी सांपरायिक, ईर्ष्या नाम गमन का है। इस गमन का विषयभूत जो मार्ग है वह पथ है । इसमें जो क्रिया हो वह ऐर्यापथिकी क्रिया है । अर्थात् गमनागमन करते समय केवल काययोग कारणक जो कर्मबंध होता है वह ऐर्यापथिकी क्रिया है । जिनके कारण जीव संसार में परिभ्रमण करता रहता है वह संपराय है- संपराय नाम कषाय का है । इस कषाय को लेकर जो क्रिया होती है, वह सांपरायिक क्रिया है । अर्थात् कषायकारणक जो कर्मबंध होता है वह सांपरायिकी क्रिया है। जीव ( जं समयं ) जिस
शु हे छे ते सूत्र “ एवं खलु एगे जीवे " इत्यादि सूत्रपाठ वडे जताव्यु छे. मेड व ( एगेणं समएणं ) मे समये ' दो किरियाओ पकरेंति " मेडिया अरे छे. ते मेडिया ( तं जहा ) या प्रमाणे छे - " ईरियावहिय च संपराइयं च " : ययथिडी डिया याने मील सांपरायिडी डिया. धैर्या એટલે ગમન. તે ગમનને માટેના જે માર્ગ હાય છે તેને ધૈર્યાપથ કહે છે. તેમાં જે ક્રિયા થાય છે તે ક્રિયાને ઈર્યાપથિકી ક્રિયા કહે છે, એટલે કે ગમ નાગમન કરતી વખતે કાયયેાગને કારણે જે કમ બંધ થાય છે તેને ઈર્યોપથિકી ક્રિયા કહે છે, સંપરાય એટલે કષાય. જેના કારણે જીવ સ`સારમાં પરિભ્રમણ કર્યાં કરે છે તેનું નામ સપરાય ( કષાય ) છે. તે કષાયને લીધે જે ક્રિયા થાય છે તે ક્રિયાને સાંપરાયિકી ક્રિયા કહે છે, એટલે કે કષાયને કારણે જે કર બધ थाय छे तेने सांयरायिडी डिया हे छे " जं समयं " के समये व " ईरिया
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨