Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
पारिव्राजकेषु नयेषु सुपरिनिष्ठितश्चाप्यभवत्, तत्र खलु श्रावस्त्यां नगयीं पिंगलको नाम निर्ग्रन्थो वैशालिक श्रावकः परिवसति, ततः पिंगलको नाम निर्ग्रन्थो वैशालिक श्रावकोऽन्यदा कदाचित् यत्रैव स्कन्दकः कात्यायन गोत्रस्तत्रैवोपागनिरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु बहुसु बंभण्णएसु परिव्वायाएसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए यानि होत्था) वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, समावेद, अथर्ववेद इन चार वेदों का जानने वाला था । साथ में इतिहास पुराणों का भी वह ज्ञाता था । निघंटु को भी वह जानता था । केवल इतिहास निघंटु सहित ही वह चारों बेदों का ज्ञाता था सो बात नहीं है किन्तु अङ्गो पाङ्ग सहित एवं रहस्य युक्त चारों वेदों का वह विशेषरूप से ज्ञाता था स्मारक था वारक था धारक था, एतावता ऐसा ज्ञात होता था कि मानों चारों ही वेद इसे कण्ठस्थ हैं । इस तरह वह वेदसंबंधी सम्पूर्ण ज्ञान से परिपूर्ण था । वेदों के छहों अंगों का वेत्ता था। षष्ठि तंत्र में विशारद था । गणित शास्त्र में पण्डित था । शिक्षा शास्त्र में, आचार शास्त्र में, व्याकरण शास्त्र में छंदः शास्त्र में व्युत्पत्ति शास्त्र में, ज्योतिष शास्त्र में तथा और भी अनेक ब्राह्मण शास्त्रों में एवं परिव्राजक संबंधी नीति में बहुत अधिक चतुर था। (तस्थ णं सावस्थीए णयरीए पिंगलए नियंठे बेसा foreray परिवes ) उसी श्रावस्ती नगरी में वैशालिक के श्रावक एक forms नाम के निर्ग्रन्थ रहते थे । (तएण से पिंगलए णामं नियंठे वागरणे छदे, निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु बहूसु बंभण्णएसु परिव्वायाएसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था) ते ऋग्वेद, समावेह, अने यन्तुर्वेद्द भने अथर्ववेद मे ચારે વેદોના જાણકાર હતા. સાથે સાથે ઇતિહાસ પુરાણેના પણ તે જાણુકાર હતા. તે નિઘંટુને પણ જાણકાર હતા. ઈતિહાસ નિઘંટુ સહિત ચારે વેદના તે જાણકાર હતા એટલું જ નહીં પણ તે અંગ ઉપાંગ સહિત અને રહસ્ય સહિત ચારે વેદોના વિશિષ્ટરૂપે જ્ઞાતા હતા, સ્મારક હતા વારક હતા, અને ધારક હતા. તેથી એવું લાગતું કે તેણે જાણે કે ચારે વેદોને કંઠસ્થ કરી લીધા છે. આ રીતે વેઢાના વિષયમાં તે સપૂર્ણ જ્ઞાન ધરાવતા હતા, વેઢાનાં છએ અગાના ते वेत्ता (ज्ञान) तो. ते षष्ठितत्रनो पशु निष्णात तो गणित शास्त्र, शिक्षाय શાસ્ત્ર, આચાર શાસ્ત્ર, વ્યાકરણ શાસ્ત્ર, છંદ શાસ્ત્ર, વ્યુત્પત્તિ શાસ્ત્ર, યેાતિષ શાસ્ત્ર તથા ખીજા પણ અનેક બ્રાહ્મણ શાસ્ત્રોના તે વિશારદ હતા પરિવ્રાજક સંબંધ नीतिमां ते धोयतुर तो ( तत्थ णं सावत्थीए णयरीए पिंगलए निय' है बेसालिए सावए) हवे मेन श्रावस्ती नगरीमा वैशासिक श्राव, चिंगल नाभना ऊ निर्थथ रखेतो तो, (तरण से पिंगलए णामं नियंठे वेसालिए साबए )
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨