Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
५१२
भगवतीसूत्रे चित् सर्वथा विनाशो भवति अथवा अनंतः प्रवाहरूपेण सर्वदा स्थितिमत्त्वेन अनंतः ? ॥ १ ॥ ' स अंते जीवे अणंते जीवे ' सान्तः किम् अंतसहितः जीवः अथवा अनंतः-अंतरहितः जीवः? ॥ २ ॥ ' स अता सिद्धी अणंतासिद्धी' सान्ता -अन्तसहिता सिद्धिः-सिद्धिक्षेत्रम् , अनंता-अन्तरहिता सिद्धिः? ॥३॥ ‘स अंते सिद्धे अणंते सिद्धे ' सान्तः किम् अंतसहितः सिद्धः अथवा अनंतः अंतरहितः सिद्धः १ ॥४॥ 'केण वा मरणेणं-मरमाणे जीवे वडइ वा हायइ वा' केन वा मरणेन म्रियमाणो जीवो वर्धते वा हीयते वा, संसारस्य वर्द्धनात् जीवो वर्द्धते संसारस्य हान्या वा होयते जीवः कीदृशं मरणं प्राप्य जीवः संसारे परिभ्रमति कीदृशं च मरणं प्राप्य संसारं क्षपयतीति पश्च प्रश्नाः ॥ ५ ॥ ' एवं बुच्चमाणे' प्रवाहरूप से सर्वदा स्थिति वाला होने से बिनाश रहित है ? तथा स अन्ते जीवे अणंते जीवे" जीव अन्त सहित है अथवा अनन्त है अन्त रहित है ? स अन्ता सिद्वी अगंता सिद्वी " सिद्धीक्षेत्र अन्त सहित है या अन्त रहित है ? " स अन्ते मिद्धे अणंते सिद्धे सिद्ध अन्त सहित हैं कि अन्त रहित हैं ? केग वा मरणेगं मरमाणे जीवे पट्टई वा हायइ वा " जीव किस मरणसे मरता हुआ अपने संसार के बंधन से बढता है और अपने संसार की हानि से घटता है तात्पर्य कहने का यह है कि जीव में न हास होता है और न बढती होती है, परन्तु संसार के वर्धन से जीव का वर्धन और संसार ने हास से जीव की हानि मानली जाती है। इसी आशय से यह हानि वृद्धि विषयक प्रश्न किया गया है तात्पर्य इस प्रश्न का यही है कि कैसे मरण को प्राप्तकर जीव संसार में घूमता रहता है और कैसे मरण को प्राप्त कर जीव अपने संसार को नष्ट कर देता है ? इस प्रकार से ये पांच प्रश्न हैं। एवं बुच्च. सोना ही नाश थाय छ ॐ नथी थो तथा ( स अंते जीवे अणते जीवे ) ०१ मत सहित छ मन्त २डित छे. ( स अंता सिद्धि अणता सिद्धि ?) सिद्धि-सिद्धि मतसहित छ ? मत २डित छे. (स अ ते सिद्धे अणते सि.) सिद्ध संतसहित छ ? ॐ मत२डित छे ? ( केण वा मरणेण मरमाणे जीवे बइ वा हायइ वा) ०१ या भ२४थी पाताना संसारना qधाराथी વધે છે અને ક્યા મરણથી પિતાના સંસારની હાનિથી ઘટે છે. કહેવાનું પ્રયજન એ છે કે જીવમાં તે વૃદ્ધિ પણ થતી નથી અને હાનિ હૂાસ પણ થતી નથી. પણ સંસારના વધનથી જીવની વૃદ્ધિ એને સંસારની હાનિથી જીવની હાનિ અહીં માની લેવામાં આવી છે. તેથી આ પ્રશ્નોને આ પ્રમાણે ભાવાર્થ ઘટાવી શકાય કેવા પ્રકારના મરણથી જીવ સંસારમાં વારં વાર પરિબ્રણ કરે છે. અને કેવા પ્રકારના મરણથી જીવ પિતાના સંસારમાં પરિભ્રમણની સ્થિતિને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨