Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १ उ. ९ सू. ६ अप्रत्याख्यानस्वरूपनिरूपणम् ३३७ च,श्रीदेवताकृपाकटाक्षप्रत्यक्षलक्ष्यमाणद्रविणलक्षलक्षणविलक्षणहिरण्यपट्टसमलंकृतमूर्धनगरप्रधानव्यवहर्तुः, 'तणुयस्स य' तनुकस्य च, दरिद्रपूर्वोपार्जितपापकर्मकस्य माप्तदारिद्रयसंपन्नस्य 'किवणस्स य ' कृपणस्य च सति विभवेपि सत्कर्मादौ दानादिरहितस्य ‘खत्तियस्स य ' क्षत्रियस्य राज्ञश्च ' समं चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ' सममेवापत्याख्यानक्रिया क्रियते भवतीत्यर्थः किं समैव सदृश्येवाऽप्रत्याख्यानक्रिया सर्वेषां भवतीति प्रश्नः। भगवानाह—'हंते'-त्यादि । 'इंता गोयमा' हंत गौतम! 'सेठियस्स य जाव अपच्चक्वाणकिरिया कज्जइ' श्रेष्ठिकस्य च यावद् अप्रत्याख्यानक्रिया क्रियते, अत्र यावत्पदेन तनुककृपणक्षत्रियपदानां संग्रहः, श्रेष्ठिकदरिद्रकृपणराज्ञां सर्वेषां तुल्यैवापत्याख्यानक्रिया भवतीति लक्ष्मीदेवीके कृपाकटाक्षसे प्रत्यक्षलक्ष्यमाण लक्षद्रविणराशी (धन का ढेर) से निर्मित सुवर्ण के मुकुट से अलंकृत हो रहा है ऐसा जो नगर का प्रधान व्यवहारी-नगर सेठ, उनकी तथा (तणुयस्स) तनुक-पूर्वोपार्जित पापकर्म के कारण लक्ष्मी रहित जो दरिद्र व्यक्ति है उसकी, (किवणस्म) विभव के होने पर जो अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग दान धर्मादि में नहीं करता है ऐसा जो कृपण व्यक्ति है उसकी तथा ( खत्तियस्स) क्षत्रिय-राजा जो है उसकी (समं चेव अप्पच्चक्खाण किरिया कज्जइ) अप्रत्याख्यान क्रिया एकसी ही होती है क्या ? समान ही होती है क्या ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् कहते है कि-(हंता) हां (गोयमा) गौतम ! ( सेटियस्स य जाव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ ) श्रेष्ठी की यावत् अप्रत्याख्यान क्रिया समान ही होती है। यहां यावत् पद के (तनुक, कृपण, क्षत्रिय ) इन पदों का संग्रह किया गया है । तात्पर्य कहने का यह है कि श्रेष्ठी दरिद्र कृपण, और राजा इन सब की अप्रत्याख्यान क्रिया एकसी ही होती है । सबकी क्रिया समान ही होती है इस बात
सावन । “सेट्रियस्स" रेनुं भरत सक्ष्मीवानी पारथी प्रत्यक्ष लक्ष्यમાન-લક્ષદ્રવિણરાશીથી રચિત સુવર્ણ મુગટથી શોભી રહ્યું છે એવા નગરના भुज्य व्यापारी-नगरी नी तथा " तणुयस्स" तनुनी-पूर्वना पापभने । २ सभीथी २डित दरिद्र स्थितिमा भूआयेत छ तेनी " किवणस्स" सनी (ધન હોવા છતાં પણ જે વ્યક્તિ તેને દાનધર્માદિમાં સદુપયોગ કરતા નથી तेनी) तथा “ खत्तियत्स" क्षत्रियनी (२in-l) “सम चेव अप्पच्चक्खाण किरिया कज्जइ" मप्रत्याभ्यान या शु समी जय छ ! लगवान महावीर स्वामी तेनी मा प्रमाणे वाममाछ-"हता गोयमा!"डा, गीत! " सेट्रियस्स य जाव अप्पच्चक्खाणकिरिया कज्जा" श्रेष्डीनी, हरिद्रनी, सनी
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨