Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे प्रभाषमाणस्य भाषा । पूर्व क्रिया अदुःखा यथा भाषा तथा भाणितव्या, क्रिया अपि यावत्-कुर्वतः खलु सा दुःखा, नो खलु सा अकुर्वतो दुःखा, तदेवं वक्तव्यं स्यात् । कृत्यं दुःखं स्पृश्यं दुःखं क्रियमाणकृतं दुःखं, कृषा कृत्वा प्राणभूतजीव सत्त्वा वेदनां वेदयन्तीति वक्तव्यं स्यात् ।। सू० २ ।। भाषा नहीं है, और बोलने में आरही जो भाषा है वही भाषा है। तथा बोली जा चुकी जो भाषा है वह भी भाषा नहीं है अभाषा है तो वह बोलते हुए की भाषा है कि नहीं बोलते हुए की भाषा है ? (भासओ णं सा भासा ) वह बोलते हुए की भाषा है । (नो खलु सा अभासओ भासा ) नहीं बोलते हुए की भाषा नहीं है । (पुल्वि किरिया अदुक्खा, जहा भासा, तहा भाणियव्वा ) करने से पहिले की क्रिया दुःख हेतु नहीं होती है । जैसे भाषा वैसे ही इसे समझना चाहिये । (किरिया वि जाव करणओ णं सा दुक्खा, नो खलु सा अकरणो दुक्खा सेवं वत्तव्वं सिया) क्रिया भी यावत् करते हुए को दुःख की हेतुभूत होती है। नहीं करते हुए को वह दुःख की हेतुभूत नहीं होती है। ऐसा कहा जा सकता है। (किच्चं दुक्खं फुसं दुक्ख, कज्जमाणकडं दुक्ख, कटु कटु पाण भृय जीवसत्ता वेयणं वेएंति इति वत्तव्वं सिया०) दुःख क्रियाजन्य होता है। दुःख स्पृश्य होता है । दुःख क्रियमाण कृत होता है। प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व उसे करके वेदना भोगते रहते हैं। ऐसा कहा जाता है। सू-२ ગણવામાં આવતી હોય, તથા બલવામાં આવી ચૂકેલી ભાષાને અભાષા કહેવામાં मावती यतो ते मानानी मा छे नही माना२नी भाषा छ। भासओणं सा भासा) त मासनारानी भाषा छे. (नो खलु सा अभासओ भासा ) नडी मोटाना२नी भाषा नथी. (पुधि किरिया अदुक्खा, जहा भासा, तहा भाणियब्बा) કર્યા પહેલાંની ક્રિયા દુખના હેતુરૂપ હોતી નથી. ભાષાની જેમ જ ક્રિયાના विषयमा ५५] समन् (किरिया वि जाव करणओ णं सा दुक्खा, नो खलु सा अकरणओ दुक्खा सेवं बत्तव्य सिया) यि ५ ( यावत् , ) ४२॥२ने दुप ની હેતુભૂત હોય છે. નહી કરનારને તે દુઃખની હેતુભૂત થતી નથી, તેમજ
वु नये. ( किच्चं दुक्खं, ) फुसं दुक्खं, कज्जमाणकडं दुक्खं, क क पाणभूयजीवसत्ता वेयणं वेएंति इतिवत्तव्य सिया० ) : या न्याय छे. દુઃખ પૃશ્યજ હોય છે. દુઃખ ક્રિયમાણુકૃત હોય છે. પ્રાણી, ભૂત, જીવ અને સત્વ, ક્રિયા કરીને જ વેદના ભગવ્યા કરે છે એમ કહેવું જોઈએ. સૂરા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨