Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१ उ० १० सू० २ स्वमतस्वरूपनिरूपणम्
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टीका- ' गोयमा' हे गौतम ! ' जं णं अन्न उत्थिया एवं आइक्वंति ' यत् अन्ययूथिका एवमाख्यान्ति एवं भाषन्ते एवं प्रज्ञापयन्ति एवं प्ररूपयन्ति, 'जाव' यावत् अत्र यावत्पदेन - तन्मतप्रतिपादकः पूर्वोक्तः सर्वोऽपि पाठः संग्राह्यः । कियत्पर्यन्तमित्याह - ' वेयणं वेदेतीति वत्तन्वं सिया' वेदनां वेदयन्तीति वक्तव्यम् स्यात्, प्राणभूतजीवसत्त्वाः स्वभावेनैव वेदनां वेदयन्तीति । 'जे ते एव मासु मिच्छा ते एवमाहंसु ' ये ते एवमाहुर्मिथ्या ते एवमाहुः ' अहं पुण गोमा एवं आइक्खामि भासेमि पनवेमि परूवेमि' अहं पुन गौतम ! एवमाख्यामि
टीकार्थ - ( गोयमा ! ) हे गौतम! (जं णं अन्न उत्थिया) जो अन्यतीर्थिकजन ( एवं आइक्खति ) ऐसा सामान्यरूप से कथन करते हैं ( एवं भासते ) ऐसा विशेषरूप से कथन करते हैं ( एवं प्रज्ञापयन्ति ) इस तरह प्रज्ञापना करते हैं ( एवं प्ररूपयन्ति) ऐसी प्ररूपणा करते हैं। यहां ( यावत् ) शब्द से स्वभाववादियों के मत को प्रतिपादन करनेवाला पूर्वोक्त समस्त भी पाठ गृहित किया गया है। वह यहाँ कहां तक गृहीत किया गया है इसको प्रकट करने के लिये (वेयणं वेदेति) यह पद दिया गया है । अर्थात् स्वभाव वादियों ने जो प्रथम सूत्र में अपना पूर्ण मत प्रकट कर दिया है । ( वेयणं वेदेति ) तक वह सब पाठ यहाँ यावत् शब्द से पकड़ा गया है इसके द्वारा जो उन्हों ने यह कहा है कि प्राण, भूत, जीव, और सत्त्व ये सब स्वभाव से ही वेदना को भोगते रहते हैं (जे ते एवं आहंसु ) जो उन्हों ने ऐसा कहा है (मिच्छा ते एवमाहंसु ) वह मिथ्या कहा है । (अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि
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टीडार्थ - " गोयमा ! " हे गौतम! " जं णं अन्नउत्थिया ” मन्यतीर्थ है। अन्य भुतवाहीओ। “ एवं आइक्खति " मेवु ने सामान्य ३ये उथन उरे छे एव भासते " मेवु ने विशेषज्ञये उथन उरे छे, “एवं प्रज्ञापयन्ति" भेवी के प्रज्ञापना उरे छे, ( एवं परूयन्ति) भेवी ने पारेछे, (अहीं यावत् पहथी સ્વભાવવાદીઓના મતનુંપ્રતિપાદન કરનાર પૂર્વોક્ત તમામ પાઠ ગ્રહણ કરાયેા છે) ते पाठ यां सुधीनेो श्रणु उरखानो छे ते मतावत्राने "वेयण' वेदेति" सुधी ते पाह ગ્રહણ કરવે એમ સૂત્રકારે કહ્યું છે, એટલે કે પહેલા સૂત્રમાં સ્વભાવવાદીએ એ પાતાના પૂર્ણ મત પ્રકટ કર્યો છે. અહીં “ યાવતુ ” પદ્મ વડે એમ કહ્યું छे. (वेयणं वेदेति ) सुधीना ते पूर्वोत पाठ थड ४२वी. तेमां तेभणे मताવ્યું છે કે પ્રાણ, ભૂત, જીવ, અને સત્ત્વ, એ સૌ સ્વભાવથી જ વેદના સેાગવતા રહે છે. जे एवं आसु " भोवु ने उधुं छे ते " मिच्छा से एवमाह सु" मिथ्या धुं छे. तेमनुं ते उथन सायु नथी. “अहं पुण गोयमा !
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨