Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ उ०८ स०६ मृगघातकक्रियास्वरूपनिरूपणम् २१३ भगवानाह--' गोयमे 'त्यादि, 'गोयमा ' हे गौतम ! 'जे मियं मारेइ' यो मृगं मारयति — से मियवेरेणं पुढे ' स मृगवैरेण स्पृष्टः, इह-वैरमिति वैरहेतुत्वाद् वधः पापं वा तेन वधेन वधजनितपापेन वेत्यर्थः। मृगघातकस्यैव मृगवधजनितं पापं भवतीति भावः । 'जे पुरिसं मारेई' यः पुरुषं मारयति 'से' सः 'पुरिसवेरेणं पुढे' पुरुषवैरेण पुरुषवधजनितपापेन स्पृष्टः लिप्तो भवतीति । ननु नियमाणपुरुषस्य धनुः सकाशाद् योऽयं बाणस्योपनिपातः स न धनुर्धरपुरुषहेतुकः, अपि तु शिर छेदनकर्तुः पुरुषस्य प्रयत्नेन जात इति स एव शिरश्छेदनकर्ता पुरुषो मृगवधजनितपापेन स्पृष्टो भवितुमर्हति न तु धनुर्धरः, तर्हि कथमत्र मृगमारका मृगवैरेण स्पृष्टः, पुरुषमारकः पुरुषवैरेण स्पृष्टः, इति कथितम् ? इत्याशयेन प्रश्नयति मरने का पाप लगेगा ? ऐसा यह प्रश्न है-( गोयमा ! जे मियं मारेइ, सिय मियवेरेणं पुढे, जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवेरेणं पुढे ) हे गौतम ! जो पुरुष मृग को मारता है वह मृग के वधजन्य पाप से स्पृष्ट है और जो, पुरुष पुरुष को मारता है वह पुरुषवधजन्य पाप से स्पृष्ट है। (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव से पुरिसवेरेणं पुढे ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि यावत् वह पुरुषवैर से-अर्थात् पुरुष वधजन्य पाप से स्पृष्ट है ? शंकाकार का यहां ऐसा अभिप्राय है कि म्रियमाण पुरुष के धनुष से जो वाण छूटा वह उस धनुर्धर पुरुष हेतुक नहीं है, किन्तु शिर छेदन करने वाले उस पुरुष के प्रयत्न से वह छूटा है इसलिये वह शिरछेदन करने वाला पुरुष हो मृगवधजनितपाप से स्पृष्ट होना चाहिये धनुर्धर नहीं। तो फिर कैसे आप यह कहते हो कि मृगमारक मृगके वैर से-मृगवधजन्य पाप से स्पृष्ट है और पुरुष मारक पुरुष वैर से-पुरुषवधजन्य पाप से-स्पृष्ट है । इसी आशय से गौतम ने भगवान से यह पूछा कि “से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जाव से पुरिस
___ उत्तर-(गोयमा ! जे मियं मारेइ, सिय मियवेरेणं पुढे, जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुद्रे ) गौतम ! २ पुरुष भृगने भारे छ तेने भृगडत्यानु પાપ લાગે છે, અને જે પુરુષ પુરુષની હત્યા કરે છે તેને નરહત્યાનું પાપ લાગે છે.
प्रश्न-(से केणणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव से पुरिसवेरेण पुढे १) भगवन! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે મૃગને મારનારને મૃગહત્યાનું પાપ લાગે છે અને પુરુષને મારનારને પુરુષહત્યાનું પાપ લાગે છે? અહીં શંકાકારની શંકા એવા પ્રકારની છે કે મરનાર પુરુષના ધનુષમાંથી જે તીર છૂટયું તે મરનારના પ્રયત્નથી છૂટયું નથી. પણ તલવારથી તેનું માથુ છેદનારના પ્રયત્નથી છૂટયું છે. તે માથું છેદનાર પુરુષને જ મૃગહત્યાનું પાપ લાગવું જોઈએ, પણ તે ધનુ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨