Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
प्राणातिपातादिकरणेन । एवं प्राणातिपाताद्यभावेन संसारं व्यतिव्रजन्ति । एवं गुरुत्व- लघुत्व-आकुलीकरण परीतत्व-दीर्घत्व-हस्वत्वपर्यटनव्यतित्रजनेषु गुरुत्वाकुलीकरणदीर्घत्वपर्यटनरूपाणि चत्वारि अप्रशस्तानि संसारकारणत्वात् लघुत्वपरीतत्व स्वस्वव्यतिव्रजनानि चत्वारि प्रशस्तानि मोक्षकारणत्वादित्येवंरूपेण प्रशस्तानशस्तयोर्विचारः । एवं सप्तममवकाशान्तरं गुरु, लघु, गुरुलघु, अगुरुलघुकं वेति भङ्गचतुष्टयेन प्रश्नः । नो गुरुकं न वा लघुकं नो गुरुलघुकं किन्तु चतुर्थभंगेन ' अगुरुलघुक ' मित्याकारकेण । किं सप्तमस्तनुवातो गुरुको वा लघुको वा गुरुलघुको वा अगुरुलघुको वेति भङ्गचतुष्टयेन तनुवातविषये प्रश्नः । सप्तमस्तनुवातो सीमित ( कम ) कर लेता है, इसी तरह से इन प्राणातिपात आदिकों के सेवन से वह अपने संसार को दीर्घ कर लेता है और इनके त्याग से वह संसार अल्प बना लेता है । प्राणातिपात आदि के करने से जीव संसार में बारंबार परिभ्रमण करता है । तथा प्राणातिपात आदि के अभाव से जीव संसार से पार हो जाता है। इस प्रकार गुरुत्व, लघुत्व, आकुली करण ( संसार को बढाना ) परितत्व ( संसार को अल्प करना) दीर्घत्व, हस्वत्व, पर्यटन और व्यतिव्रजन इनमें गुरुस्व, आकुलीकरण, ( संसार को बढना ) दीर्घत्व, पर्यटन ये चार संसार के कारण होने से अप्रशस्त हैं। तथा लघुत्व, परीतत्व, ह्रस्वत्व, और व्यतिव्रजन ये चार मोक्षकारण होने से प्रशस्त हैं । इस रूप से प्रशस्त और अप्रशस्त इन दोनों का विचार किया गया है। सातवां अवकाशान्तर गुरु है, कि लघु है कि गुरु लघु है अथवा अगुरुलघुक है इस प्रकार चार भङ्गों को लेकर प्रश्न, किया गया है। तथा न वह गुरु है, न
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તિપાત વગેરે પાપેાના સેવનથી સંસારમાં રહેવાના કાળ વધારે છે અને તેમના ત્યાગથી સંસારમાં રહેવાના કાળ ઘટાડે છે. પ્રાણાતિપાત વગેરેના સેવનથી જીવને વારંવાર સંસારમા પરિભ્રમણ કરવું પડે છે, પણ તેમના ત્યાગથી જીવ સૌંસાર સાગર તરી જાય છે. આ રીતે ગુરુત્વ, લઘુત્વ, આકુલીકરણ ( સંસાર वधारव। ) परीतत्व ( संसार घटाउवो ) दीर्घत्व, हस्वत्व, पर्यटन भने व्य तिव्रन्न, तेमना गुरुत्व, माहुली ४२ ( सौंसार वधारव। ) दीर्घत्व भने पर्यટન, એ ચાર સ’સારનાં કારણરૂપ હેાવાથી અપ્રશસ્ત છે. તથા લઘુત્વ, પરીતત્વ, હસ્વત્વ અને વ્યતિવ્રજન, એ ચાર મેાક્ષના કારણરૂપ હોવાથી પ્રશસ્ત છે. આ રીતે પ્રશસ્ત અને અપ્રશસ્ત, એ બન્નેના વિચાર કર્યાં છે પ્રશ્ન-સાતમું અવકાશાન્તર ગુરુ છે, લઘુ છે, ગુરુલઘુ છે, કે અગુરુલઘુ છે? આ પ્રકારના -थार लांगाने अनुसक्षीने-प्रश्न पूछयो छे. ते बघु नथी, गुरु नथी, गुरु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨