Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पंढ
यशस्तिलकचम्पूका
ज्ञाने कः शाहि
F
विनिग्रो यत्र ॥ ७० ॥ भवति ।। ७१ ॥ नमसः ॥ ७२
कर्म
जीवः को यत्रते भवन्ति बुद्धघावयः स्वसंवेद्याः । तस्यामूर्तस्य सतः शरीरबन्धः स्वकुतः कर्मभिरेष प्रयति जीवः शरीरबन्धं वा । वातेरितः परागं भवति यथा संगमो तैरेव गर्भवासेल नीयते निजफलोपभोगार्थम् । अशुचिनि मवनत्रयेनिपात्यते श्रोत्रियो अस्मादृशां स धर्मः कथं तु निजशक्तितो व्रतग्रहणात् । किं व्रतमिह वाद्वाया यो वर्शनपूर्वको कि दर्शनार्या श्रद्धा युक्तितः पवार्येषु के पुनरमी पदार्था मेरेतद्वर्तते जगन् ।। ७५ ।।
यद्वत् ॥ ७२ ॥ नियमः ॥ ७४ ॥
ऋषि-हे राजन् ! जिसमें विषयों ( स्पर्श, रस, गन्ध, रूप व शब्द ) की संगति का त्याग है, उसे - दीक्षा कहते हैं ॥७०॥
तप
राजा - हे ऋषिराज ! आत्मा (जीव ) का क्या स्वरूप है ?
ऋषि-हे राजन् ! जिसमें स्वसंवेदन प्रत्यक्ष द्वारा प्रतीत होने योग्य बुद्धि, सुख व दुःख-आदि गुण पाये जाते हैं, उसे जोब ( आत्मा ) कहते हैं ।
राजा - हे भगवन् ! जब आत्मा अमूर्तिक है तो उसके साथ मूर्तिक शरीर का बन्ध किस प्रकार से हुआ ? ॥७१॥
ऋषि हे राजन् ! स्वयं अपने द्वारा उपार्जन किये हुए कर्मों द्वारा यह जीव वैसा पारीर के साथ बन्ध को प्राप्त होता है जैसे वायु द्वारा प्रेरित हुई धूलियों से आकाश का संगम होता है ||७२|| और उन्हीं कर्मों के द्वारा गर्भवास ( सम्मूच्र्छन, गर्भ व उपपाद लक्षणवाले जन्म स्थान ) में अपने पुण्य-पाप लक्षण वाले कर्मों के सुख-दुःख रूप फलों के भोगने के लिए लाया जाता है— जिसप्रकार चारों वेदों का पढ़नेवाला ब्राह्मण विद्वान्, धतूरा व मादक कोदों द्वारा विष्ठा में पटका जाता है ||७३ ||
राजा - हे भगवन् ! यह पूर्व में कहा हुआ समस्त जीवों में दया लक्षणवाला धर्म हम सरीखे गृहस्य पुरुषों को किसप्रकार से प्राप्त होता है ?
ऋषि - हे राजन् ! अपनी शक्ति के अनुसार अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचयं व परिग्रह त्याग आदि व्रतों के पालन करने से उक्त धर्म प्राप्त होता है ।
राजा - हे भगवन् ! इस संसार में व्रत क्या है ?
ऋषि - हे राजन् ! सम्यग्दर्शन ( तत्व श्रद्धा ) पूर्वक इच्छाओं के निरोच ( रोकने ) को व्रत कहते हैं ||७४||
राजा - हे ऋषिवर ! सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ?
ऋषि -- हे राजन् ! तत्वों ( जीव, अजीब, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा व मोक्ष) को तर्कशास्त्र के अनुसार यथार्थ श्रद्धा को सम्यग्दर्शन कहते हैं ।
राजा - हे भगवन् ! वे श्रद्धा के योग्य तत्व ( पदार्थ ) कौन है ?
ऋपि राजन् ! जिन जीव, नजीब, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा व मोक्ष आदि पदार्थों से यह तीन लोक व्याप्त हैं, वे ही पदार्थ है" ॥७५॥
१. प्रश्नोत्तराचंकारः ।