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यशस्तिलक चम्पूकाव्ये मनायामापणाक्षणकणचारिणों स्खलनगमनविहारिणी निरीक्ष्य 'प्रतीक्ष्यः पश्चामाः सुनन्दनाभिधानगोचरो भगवानेबमवाचीत्-'गहो, पुरालोकः खलु प्राणिमा कर्मविपाकः, यदस्यामेव वशायां गलेशाय 'प्रभवप्ति प्रति ।
पुरश्चारी* भगवानभिनन्दननामघाशे-'तपःकरूपमोत्पादनन्दन सुनन्दनमुने, मयं वावोः पचपीयं गर्भसंता सतो राजष्ठिपवप्रयतं समुद्रवत्तं पितरं जातमात्रा तहियोगदुःखोपसया धनदा मातरं प्रवर्षमाना च बन्दुजनमकाण्य एव "दनामी दशामानोय इदमयस्त्रान्तरमनुभवन्तो तिष्ठति, तथाप्यनया प्रौढपौषनपास्य मथुरानाथस्यौर्षिलादेवीविनोवायसमस्य पूतिकवाहनस्य महोनस्याप्रमसिध्या भवितव्यम्' इत्यवोचत् । एतम्य तय प्रस्ताचे "पिपडपाताय हिजमानः शावभिनुरुपश्रुत्य 'नान्यथा मुनिभाषितम्' इति निर्विकल्पं संकल्प्य, स्वीकृत्य चमाभिकामाहितविहा. रवसतिकामभिलषितानु"हारराहाररवीवृषत् । "जुहाव च बुखदासीति परिजनपरिहासतन्त्रेण १२गोत्रण । ततो गतेप कधितर्षेषु अमरकभङ्गाभिनयनभरते भूविनमारम्भोपाध्यायस्थानिनि लोचविचा'"रचातुर्याचार्य चतुरोक्तिचातुरीप्रघारगुणि बिम्बाधरविकारसौन्वयकादम्बरोयोगे १७ मिम्नोतप्रदेशप्रकाशनशिल्पिनि५८ मनसिजगजमदोद्दीपनापण्डिभूमि पर स्खलित गतिपूर्वक संचार करने वाली की, पश्वा भोटे समाना के नामि ने कहाअहो-आश्चर्य है कि प्राणियों का कर्मोदय निश्चय से दुःख से भी जानने के लिए अशक्य है, क्योंकि वह ( कर्मोदय ) इतनी छोटी उम्र में भी कष्ट देने के लिए समर्थ होता है।'
___ इसे सुनकर 'अभिनन्दन' नामधारी, पूज्य ज्येष्ठ ऋषि ने कहा-'तपरूपी कल्पवृक्ष को उत्पत्ति के लिए नन्दनवन-सरीखे हे सुनन्दन मुनि ! ऐसा मत कहो । पयोंकि यद्यपि जब यह गर्भ में स्थित हुई तो राजसेठ के पद पर प्रतिष्ठित हुए इसके पिता समुद्रदत्त को असमय में मरणावस्था में लाई और जन्मी हुई इसने पति के वियोग के दुःख को प्राप्त हुई 'धनदा' नामकी माता को असमय में काल-कवलित अवस्था में प्राप्त किया एवं बढ़ी हुई इसने अपने बन्धुजनों को असमय में मरणावस्था में प्राप्त किया। अब यह कष्टप्रद दूसरी अवस्था ( दरिद्र व रुग्णावस्था ) भोग रही है। तथापि जब यह प्रौढ़ युवती हो जायगी तब इसे 'उविला' नाम को पट्टरानी के बिनोद के स्थान 'पूतिकवान' नाम के मथुरा नगरी के राजा को पट्टरानी होनी चाहिए।'
उसी मथुरा नगरी में इसी अवसर पर भिक्षा के लिए प्रस्थान कर रहे बौद्ध भिक्षु ने उक्त बात सुनकर निस्सन्देह विचार किया-'मान्यया 'मुनिभाषितम्' अर्थात्-'ऋपि-वाणी मिथ्या नहीं होती, अतः उसने इस बालिका को ग्रहण करके बुद्ध मट में स्थापित किया और यह इच्छानुकूल आहारों से इसका पालनपोषण करने लगा और सेवकों की हास्य-परम्परा के पात्रभूत 'बुद्धदासी' इस नाम से बुलाने लगा।
जब कुछ वर्ष व्यतीत हुए तब ऐसे यौवन में, लावण्य सम्पत्ति से महान् हुई जम बुद्धिदासी ने, जो कि बुद्धमठ-संबंधी अने महल की शिखर के मध्य में बैठी हुई थी, भ्रमाग से बुद्ध-मठ के समीप आने वाले 'पूतिक वाहन' नामके राजा को उत्कण्ठा के साथ देखा, जो ( यौवन ) केशों को कुटिल करने के अभिनय में नाटयशास्त्र-प्रणेता भरतऋषि-सरीखा है। जो कुटी संबंधी विलारा के बारम्भ करने में शिक्षक जैसा है। जो नेत्रों के विचलन (भ्रमण ) की निपुणता में आचार्य-सा है। जो चतुर वाणी के कथन की निपुणता में प्रवृत्ति करने से महान है। जो बिम्बफल सरीखे ओष्ठों के विकार के सौन्दर्य में सुरा के संबंध जैसा है। जो नीरे९. पूज्यः । २. समयों भवति कर्मविपाकः । *. ज्येष्ठः । ३. हैं, इन्द्रवन ।। ४. प्रासा । ५. मरणावस्यां । ६. भिक्षाय । ___७. श्रुत्वा । ८. वाला। १. बुद्धस्थान । १०. सवाः । ११. आकारितवान् । १२. नाम्ना। १३. केश । १४. वक्रित । १५. विचलनं । १६. प्रवर्तनं । १५. सुरा। १८. सूत्रधार ।