Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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महासाश्वासः
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मागेऽस्मिनाकनाय ज्वलन 'पितृपते अगमेय “प्रचेतो बायो "रवेशशेषोड़ पसपरिजना यूयमेत्य पहाणाः ।। मन्त्रः स्वः स्वघारिधिगतवलयः" स्वासु दिसूपविष्टाः । "पोपः क्षेमवक्षाः कुरत जिनसबोत्साहिना विघ्नशान्तिम् ।।८०॥ 'देहेऽस्मिन्निहितार्चने नियति'"प्रारम्षगीतध्वनाशसोचः स्तुतिपाठमङ्गसरवैश्चानन्धिनि प्राङ्गणे । मृत्स्नागोमय 'भूतिपिणहरिताधर्मप्रसूनामतरम्मोभिश्च समन्द जिनपते राजनां प्रस्तुवे ।।८१।। १ पुण्यनुमश्विरमयं नवपल्लवश्रीवघेतःसरः१४ १"प्रमदमवसरोजगभंम् । वागापगा । मम वृस्तरतीरमार्गा स्नानाभृतंजिनपतेस्त्रिजगप्रमोदः ॥८॥
ब्राक्षावर चोचन "प्राचीनामलकोद्भवः । राजावनाम्रपूगोत्य:१६ स्नापयामि जिनं रसः ॥८३|| महोत्सव की शोभा पूर्ण क्यों नहीं होगी ? ।। ७९ ॥
[ इस प्रकार सन्निधापन विधि पूर्ण हुई ]
पूजा इस अभिषेक महोत्सव में, हे रक्षण-चतुर इन्द्र, अग्नि, यम, नेऋति, वरुण, वायु, कुवेर, ईश, धरणेन्द्र तथा चन्द्र ! तुम लोग, जो कि ग्रहों ( सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, धनेश्चर, रवि, राहु व केतु ) को प्रमुखता वाले हो, अपने परिवार के साथ आकर और 'भूः स्वः स्वधा-आदि मन्त्रों के द्वारा बलि { नैवेद्य ) प्राप्त किये हुए होकर अपनी-अपनी दिशाओं (पर्व, अग्निकोण, दक्षिण-आदि) में स्थित होकर शोघ्र ही जिनेन्द्र की अभिषेकविधि में उत्साहित हुए पुरुषों को विघ्न-शान्ति करो।
भावार्थ--जिनेन्द्र की अभिषेक-विधि को निर्विघ्न समाप्ति के लिए आचार्यश्री ने उक्त दिक्पालों व प्रहों का स्मरण मात्र किया है न कि उनकी पूजा की है ।। ८०॥
__ जिनेन्द्र-शरीर के पूजित हो जाने पर, भव्यों को प्रमुदित करनेवाले जिनमन्दिर के आंगन में, जो कि बाजों व स्तुतिपाठकों के मांगलिक शब्दों से गूंज रहा है एवं जिसमें गीतों की ध्वनि आरम्भ हो चुकी है, मैं प्रशस्त मिठो, जमीन पर न पड़ा हुआ गोबर-पिण्ड, भस्म-समूह, दूर्वा, दर्भ ( कुश), पुष्प, अक्षत, जल तथा चन्दन से जिनेन्द्र भगवान् की नीराजना { आरती ) करता हूँ। ८१ ॥
जिनेन्द्रप्रभु के तीन लोक को प्रमुदित करनेवाले अभिषेक जलों में मेरा यह पुण्यरूपी वृक्ष चिरकाल तक नवीन पल्लवों को शोभा युक्त हो और मेरे चित्तरूपी तडाग के मध्य में हर्षरूपी यथेच्छ कमल विकसित हों एवं मेरी वाणीरूपी नदी के तट का मार्ग दुस्तर हो, अर्थात्-उसे कोई पार न कर सके ।। ८२॥
___ में मुनस्कादाख, खजूर, नारियल, ईख, पका आँवला, राजादन (चिरोंजी या खिरनी ) आम्र व सुपारी के रसों से जिनेन्द्र का अभिषेक करता हूँ ।। ८३ ।।।
१. स्नापनविषौ । २. हे यम !। ३. हे नैऋते !। ४. हे वरुण ! । ५. हे धनद ! । ६. हे सोम ! ( चन्द्र ! )।
७. अधिगता प्राप्ता वलियस्ते । ८. दीघ्र । ९. जिन देह नीराजनां पारे । १०. सति । ११. भस्म । १२. दुर्वा । १३. भवतु इत्यध्याहार्य । १४. चिप्तमेव तड़ागं । १५. हर्ष। ११. नालिकरं। १७. 'पक्व' दि.स. 'माघीनामलवं पक्वफलविशेषः' इति पं० । १८. पूर्ण क्रमुकं ।