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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये वर्षः पवं वाक्यविधिः समासो लिङ्ग क्रिया कारकमन्यतन्त्रम् ।
छन्यो रसो रीतिरक्रियार्क लोकस्थितिश्चात्र चतुबंश स्पुः ॥४९५11 इस महाकाव्य में निम्न प्रकार चौदह वस्तुएँ पाई जाती हैं, वर्ण, पद, वाक्य ( पद-समूह ), समास, लिङ्ग, क्रिया, कारक ( क्रिया से अन्वय रखने वाला ), अन्य तन्त्र ( अन्य शास्त्रों के सिद्धान्त ), छन्द ( अनुष्टुप्-आदि ), रस ( शृङ्गार-आदि ), रीति, अलङ्कार, अर्थ ( वाच्यार्थ) और लोकव्यवहार पटुता (नीतिशास्त्र ) ॥४९५|| इसप्रकार दार्शनिक-चूडामणि श्रीमदम्बादास शास्त्री, श्रीमत्पूज्य आध्यात्मिक सन्त श्री १०५ भुल्लक गणेशप्रसाद वर्णी न्यायाचार्य एवं वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के भूतपूर्व साहित्यविभाग के अध्यक्ष, 'न्यायाचार्य' 'साहित्याचार्य' व कवि-चक्रवर्ती श्रीमत्मुकुन्दशास्त्री खिस्ते के प्रधानशिष्य, 'नोत्तिवाक्यामृत' के अनुसन्धानपूर्वक भाषाटीकाकार, सम्पादक व प्रकाशक, जेनन्यायतीर्थ, प्नाचीनन्यायतीर्थ, काव्यतीर्थ, आयुर्वेदविशारद एवं महोपदेशक-आदि अनेक उपाधि-विभूपित्त, सागर निवासी व परवार जैन जातीय श्रीमत्सुन्दरलाल शास्त्री द्वारा रची हुई श्रीमत्सोमदेव सूरि के 'यशस्तिलकचम्पू' महाकाव्य की 'यशस्तिलक दीपिका' नामकी भाषाटीका में 'धर्मामृतवर्ष महोत्सव नामका अष्टम आश्वास समाप्त हुआ।
इति भद्रं भूयात्--