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अन्त्य मङ्गल व आत्म-परिचय
जो है सत्यमार्ग का नेता, अरु रागादि-विजेता है ।
जिसकी पूर्णज्ञान- रश्मि से, जग प्रतिभासित होता है ।। जिसको चरणकमळ-सेपा से, यह अनुवाद राय है।
ऐसे 'ऋषभदेव' को हमने, शव-शव शोश नवाया है ॥१॥
बोहा
सागर नगर मनोज्ञतम, धर्म धान्य आगार । वर्णाश्रम- आचार का शुभ्ररूप साकार ||२|| जैनी जन, बहु बसें, दयाधर्मं निजधार । पूज्यचरण वर्णी लसें, जिनसे हों भवपार ॥३॥ जैन जाति परवार में, जनक 'कन्हैयालाल' । जननी 'हीरादेवि थीं, कान्तरूप गुणमाल ॥४॥ पुत्र पाँच उनसे भये, पहले 'पन्नालाल' । दूजे 'कुंजीलाल' अरु, वीजे 'छोटेलाल' ||५|| चौथे 'सुन्दरलाल' बा, पंचम 'भगवतळाल' । प्रायः सब ही बन्धुजन, रहें मुदित खुशहाल ||६|| वर्तमान में बन्धु दो, विलसत है अमलान । बड़े 'छोटेलाल' वा 'सुन्दरलाल' सुजान ॥ भाई 'छोटेलाल' तो करें वणिज व्यापार | जिनसे रहती है सदा, कमला मुदित अपार ||८|| बाल्यकाल के मम रुचि, प्रकटी विद्या हेत । तातें हम काशी गये, ललित कला संकेत ||२९||
चौपाई
द्वादश वर्ष साधना करी । गुरु-पदपङ्कज में चित दई ॥
उन्नति की गड़ी ||१०||
"मातृसंस्था' में शिक्षा व्ही । गैल सदा व्याकरण, काव्य, कोश, अतिमाना । तर्क, धर्म अरु नीति वखाना ॥ Rate दि का परधाना । नानाविध सिख भयो सुनाना ||११ ॥
वोहा
कलकत्ता कालेज की, तीथं उपाधि महान । जो हमने उत्तीर्ण की, तिनका करूँ बखान ॥ १२॥
श्रीपाई
पहली 'न्याय तीर्थ' कूं जानो । दूजी 'प्राचीनग्याय प्रमानों ॥
तीजी 'काव्यतीर्थ' को मानों । जिसमें साहित्य सकल समानों || १३||
१. श्री स्याद्वाद जैन महाविद्यालय वाराणसी का स्नातक-सम्पादक । २. वक्तृत्वकला । ३. विश्वान् ४. भारतीय षड्दर्शनशास्त्र ।