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अष्टम आश्वासः
अपि । यस्याक्षराबसिरमौरविलोपामिराकाष्यते मनशासनलेवनेषु ।
तस्मै 'बिक्रियु न यच्छति रछुकाय को नाम लेखातामणिनामधेयम् ॥४९४५
धाकनमकालातीतसंवरसरशतेष्वष्टस्वकाशोत्मषिकेषु गते ( अद्भुतः ८८१) सिद्धार्थसं यस्सरान्तर्गतचंत्रमासमरनत्रयोदश्यां पापडय-सिंहल-चोल-बेरमप्रमातोन्महीपतीन्प्रसाथ्य मल्याटोप्रवर्षमानराज्यप्रभाधे श्रीकृष्ण राजवे सति तपादपनोपजीविनः समधिगतपञ्चमहाशवमहासामन्ताधिपतेश्धालुक्यफुलजन्मतः सामन्तचूरामणेः श्रीमदरिकेसरिणः प्रथमपुत्रस्य श्रीमद्वागराजस्य लक्ष्मीप्रवर्षमान सुधाराया" गङ्गाधारायां विनिर्मापिसमिव काध्यमिति ।
सकसलाकिलोकचूडामणेः बीमन्नेमिदेवभगवतः शिष्येण सोनवद्यगचपर्यावद्याधरचकच्चायतिशिक्षणभण्डमीभवस्वरणकमलेन भोसोमदेवमूरिणा विरचिते यशोधरमहाराजचरिते यशस्तिलकापरनाम्नि महाकाव्ये धर्मामृतवर्षमहोत्सवो नामाष्टम बाश्वासः ।
[अब लेखक का परिचय देते हैं-] श्रीमत्सोमदेवसूरि द्वारा रचे गए और सज्जन-समह द्वारा प्रशंसनीय गुणरूपी रत्नों की उत्पत्ति के लिए पर्बत-सरीखे 'यशोधरमहाराजचरित' की सुन्दर लिपिवाली पुस्तक (शास्त्र ) ऐसे 'रच्छुक' नामके लेखक द्वारा लिखी गई है, जिसका हृदय का नोना विदा भी लीलारूपी जन टु पत है ।। ४९३ ॥
उस लेखक की विशेषता यह है
जिसकी अक्षर-पक्ति चञ्चल नेत्रोंवाली कमनीय कामिनियों द्वारा कामदेव के शामन लिखने में आकांक्षा की जाती है, ऐसे उस रच्छुक' नाम के लेखक के लिए विद्वानों के मध्य में कौन सा बिद्वान् 'समस्त लेखक-शिरोमणि' नामको पदवी प्रदान नहीं करता ? ॥ ४९४ ॥
ग्रन्थकर्ता का समय व स्थान शक संवत् ८८१ ( विक्रम संवत् १०१६ ) की सिद्धार्थसंवत्मर ( वीरसंवत् ) के अन्तर्गत चैत्रमास को मदनत्रयोदशी ( शुक्लपक्ष की त्रयोदशो ) में, जब [ राष्ट्रकूट या राठौर वंश के महाराजा | श्री कृष्णराजदेव (तृतीय कृष्ण ) पाण्डय, सिंहल, चोल व घेरम वगैरह राजाओं पर विजयश्री प्राप्त करके अपना राज्यप्रभाव ( सैनिकशक्ति ) मल्याटी ( मेलपाटी) नामक सेना शिविर में वृद्धिंगत कर रहे थे, तब उनके चरणकमलों का आश्रय करनेवाला चालुक्यवंशज ऐसा अरिकेसरि नामक सामन्त राजा था, जो कि सामन्तराजाओं में चूड़ामणि-सा श्रेष्ठ है और जो पंचमहाशब्दों ? का निश्चय करनेवाले महासामन्तों का अधिपति है, उसके चागराज ( वद्दिग ) नाम के ज्येष्ठ पुत्र को राजधानी गंगाधारा नाम की नगरी में, जिसमें लक्ष्मी फो कृपा से द्रव्य-प्रवाह वृद्धिमत हो रहा है, यह यशस्तिलकचम्पू' महाकाव्य रचा गया।
इसप्रकार समस्त दार्शनिक विद्वत्समूह में चूड़ामणि-सरीने सर्वश्रेष्ठ श्रीमत्पूज्य नेमिदेव आचार्य के शिष्य ऐसे श्रोमसोमदेवसूरि द्वारा, जिनके चरणकमल तत्कालीन निर्दोष गद्य-पद्य काव्यों के रचयिता विद्वत्समूह के चक्रवर्तियों के मस्तक पर अलङ्कार रूप से शोभायमान हैं, रचे हुए 'यशस्तिलकचम्पू' महाकाव्य में, जिसका दूसरा नाम 'यशोधरमहाराजचरित है, धर्मामृतवर्षमहोत्सव नाम का यह आठवा आश्वास पूर्ण हुआ।
१. स्वीभिः । २. विवेकिषु मध्ये । ३. द्रव्य । ४. नाम नगर्याम् ।