Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रशस्तिलक चम्पूकाव्ये
सम्यक्त्वं मन्यन्तानुबन्धिनस्ते कषायकाः । अप्रत्याख्यानरूपाश्च देशद्रत विघातिनः ॥४६८ ।। प्रत्याख्यानस्वभाषाः स्युः संयमस्य विनाशकाः । वारिषे तु यथास्याते कुर्युः संचलनाः क्षतिम् ||४६९ ॥ पाषाणभूरजीवारि लेखा प्रमत्वाभवन् । कोषो यथाक्रमं गत्येश्वद्यतियंनुनाकिनाम् ||४७० ॥ शिलास्तम्भास्थि साइडम वेत्रवृत्तिद्वितीयकः । अधः पशुतरस्वनं गति संग सिकारणम् ॥४७१ ॥ वेणुमूलं राशृङ्गारः समाः । माया तथैव जायेत चतुर्गतिवितोये ॥ ४७२ ॥ विमिनीला पुलपरिखारागसन्निभः । लोभः कस्य न संजातस्तत्संसारकारणम् ॥१४७३ ॥
कपायों का स्वरूप
इनमें से जो सम्यक्त्व गुण का घात करती हैं, अर्थात् सम्यग्दर्शन को नहीं होने देती, उन्हें अनन्तानुबन्धि कषाय कहते हैं। जो सम्यक्त्व का घात न कर श्रावकों के देश ( एकदेश चारित्र ) को नष्ट करती हैं, वे अप्रत्याख्यानावरण कषाय हैं। जो कषाय सम्यग्दर्शन व देशव्रत को न घातकर मुनियों के सर्वदेश चारित्र को घातती है, उन्हें प्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं एवं जो कषाय केवल यथाख्यात चारित्र को नहीं होने देतीं वे संज्वलन कषाय है ।। ४६८-४६९ ।।
शक्ति की अपेक्षा कपायों के मेद
चारों कोप आदि बागानों में
के शक्ति की अपेक्षा से भो चार-चार भेद है। पत्थर की लकीर सरीखा क्रोध, पृथिवी को लकीर-सा क्रोध, धूलिकी लकीर-सा क्रोध और जलकी लकीर-सा क्रोध । इनमें से पत्थर की लकीर सरीखा उत्कृष्ट शक्तिवाला कोष जीव को नरकगति में ले जाता है । पृथिवी की रेखासा क्रोष जीव को तिर्यञ्च गति में ले जाता है। धूलि की रेखा जैसा क्रोध जीव को मनुष्यगति में ले जाता है और जलरेना-सा जघन्य शक्तिवाला क्रोध जीव को देवगति में ले जाता है ।। ४७० ।।
मान कषाय के भी शक्ति की अपेक्षा चार भेद हैं--पत्थर के खम्भे के समान, हड्डी के समान, गोली लकड़ी के समान और वेत के समान जैसे पत्थर का खम्भा कभी नहीं नमता वैसे हो जो मान जीव को कभी विनीत नहीं होने देता, वह उत्कृष्ट शक्तिवाला मान जीव को नरक -गति में जाने का कारण है। हड्डी-जेसा भान जीव को तिर्यच गति में ले जाने का कारण है। थोड़े समय में नमने योग्य गोली लकड़ी - जैसा अनुत्कृष्ट शक्ति वाला मान जीव को मनुष्य गति में उत्पन्न होने का कारण है और जल्दी नमने लायक बेंत सरीखा मान जीव को देवगति में ले जाने का कारण है ।।४१ ॥
इसी तरह वाँस की जड़, बकरी के सींग, गोमूत्र और चामरों जैसी माया क्रमशः चारों गतियों में उत्पन्न कराने में निमित्त होती है । अर्थात्-जैसे बॉस को जड़ में बहुत-सी शाखा प्रशाखाएँ होती हैं वैसे हो प्रचुर छल छिद्रों वाली व उत्कृष्ट शक्ति बाली माया जीव को नरकगति की कारण है। वकरी के सींगों-सरीखी कुटिल मायातिर्यञ्चगति को कारण है और गोमूत्र जैसी कम कुटिल माया मनुष्यगति की कारण है और और चामरों - सरीखी माया देवर्गात की कारण है ।। ४७२ ।।
किरमिच के रंग, नील के रंग, शरोर के मल और हल्दी के रंग सरीखा लोभ शेष कपायों की तरह किस जीव के संसार का कारण नहीं होता ? अर्थात् - किरमिच के रंग-जैसा पक्का तीव्र लोभ नरकगतिरूप
१. दीक्षायाः । २. विनाशं । ३. सदृश । ४. साई काष्ठ ।