Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तम आश्वासः
पर्वतस्तु यशार्थं पावः सृष्टाः स्वयमेव स्वयंभुषा । यज्ञो हि भूयं सर्वेषां तस्माद ★ ब्रह्मणे ब्राह्मणमालभेत इन्द्राय क्षत्रियं कामाय पुंश्चलं, अतिकृष्टाय मागणं, गोतायतं तेन सुरा पोता भवति । सुराश्च तिथ एव तो संमताः नेष्ट्वा संवत्सरान् मातरमप्यभिलषति । उपेहि मातरम् उपेहि स्वक्षारम् ।
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घोवष्टः ॥ १२८ ॥
मवलयः वैश्यं तमसे शूवम्, उससे तस्कर, आत्मनेपली या स्त्रियं पक्षिणों, सोत्रामणी य एवंविधां सुरां पिवति ष्टी, गोडी, मागधी चेति । परोसने ब्राह्मणो 'गोसवं
"बलानि नियुज्यन्ते पशूनां मध्यमेऽहनि । अश्वमेधस्य वचनान नि पशुभिस्त्रिभिः ॥ १२९ ॥ "होको वा महाजो वा श्रोत्रियाय विज्ञस्यते " निषेधते तु विध्याय लवसुगन्धिनिधिविधिः ।। १३० ॥
का मध्यभाग अपनी विद्या के बल से रची हुई आठ ईतियों (सर्प व कण्टकादि अथवा टिप्पणीकार* के अभि प्राय से अतिवृष्टि व अनावृष्टि आदि ) द्वारा पीड़ित किया जा रहा था और ब्रह्मा का रूप धारण करके नगर बाह्य प्रदेश पर बैठ गया एवं उसी के निकट मजुर्वेद का ज्ञाता पर्यंत पुरोहित होकर बैठा था । मायामयी सृष्टिवाले पिङ्गल, मनु, भत मरोचि और गोतम वगरहता हो गए, यह सब कालासुर को माया थी । ब्रह्माजी चारों मुखों से उपदेश देते थे और पर्वत आदेश देता था ।
ब्रह्मा ने स्वयं यज्ञ के लिए ही पशुओं की सृष्टि की है। यज्ञ सबको समृद्धि के लिये है । इसलिए यश मे किया आनेवाला पशुवध वध नहीं है ।। १२८ ।।
ब्रह्मा के लिये ब्राह्मण का होम करना चाहिए। इन्द्र को सन्तुष्ट करने के लिये क्षत्रिय का होम करना चाहिये। वायु के लिए वेश्य को होम देना चाहिए। तम के लिए शुद्ध को होम देना चाहिए। उत्तमस-राहु की शान्ति के लिए चोर को होम देना चाहिए । आत्मा के लिए नपुंसक का होम करना चाहिए । फामदेव के लिए व्यभिचारी का होम करना चाहिए। अतिक्रुष्ट के लिए मागध का होम करना चाहिए। गीत के लिए पुत्र का होम करना चाहिए। और सूर्य देवता के लिए गगिणी स्त्री का होम करना चाहिए। जो मानव सांत्रामणि यश में वैदिक मन्त्रों द्वारा सुसंस्कृत सुरा पोता है, उसे शराबखोर नहीं समझा जाता । वेद में लोन प्रकार की सुरा मानी गई है । १. पेष्टो - जो वगैरह के आटे से बनी हुई, गोडी--गुड़ से बनाई हुई और माधवी - जो महुए से बनती है । गोसव यज्ञ में ब्राह्मण तत्काल जन्मे हुए गाय के बछड़े से यज्ञ करके वर्ष के अन्त में माता की भी इच्छा करता है। माता के पास जाओ । बहिन के पास जाओ ।
मेघ यज्ञ में मध्याह्न-वेला में तीन कम छह सो अर्थात् पचिस सत्तानवे - ५९७ पशु मारे जाते
* ब्रह्मणे ब्राह्मणमालभते । क्षवाय राजन्यं । मदद । तपसे पूजने नकरं 1 तारकाय वीरहणम् । पाप्मने पली । आक्रयाया योग कामाय श्चलम् अतिष्टाय मागधम् । गीताय सूतं । नुसाय लुषम् ।--वैत्तिरीय ब्राह्मण ३, ४ । वागरानंयो संहिता ३०, ५ में तथा शय त्राह्मण २३, ६, २ में भी पाठ भेद के साथ उक्त उद्धरण मिलता है। ९. होमयेत् । २. गंगकम् । ३. भाट स्युर्गावधास्तु मगधाः वन्दिनः स्तुतिपाठकाः 1 ४. थोडी पेटी माध्वी च विज्ञेया त्रिविधा सुरा । - मनुस्मृति सद्यः प्रसूलगवा । ७ वाजसनेयी संहिता २४ ४० को उव्वद मीर है, उसमें उत्तरार्ध इस प्रकार है— 'अश्वमेघस्य यशस्य नवभिचाधिकानि न । ★ अधिक्रियन्ते । ८. महोक्षं वा महाजं वा थोत्रियायोगात्पयेत् । सत्क्रियान्वासनं स्वाट्ट भोजनं सूनुतं च ॥ १०९ ॥ याज्ञवल्क्य स्मृति पू० ३४ । उक्षो वृषभ । ९. छागः । १०. हिंस्यते ।
११-९४ । महीन की
५. गुदविकार । ६. धेन्वा - टीका में यह श्लोक पाया जाता