________________
यशस्तिलकचम्पूकाव्ये राजा-पुष्य, समास्ताम् । अयं भवानेतद्यतिकरं कथयितुमर्हति । पुष्यः-स्वामिन्, 'कुलपालिकात्र प्रगल्भते ।
सुपतिः मट्टिनीमाहूय 'अम्य, कोऽयं म्पतिफरः' इत्यपृष्त । भट्टिनी गतमुदन्तमास्यत्-काश्यपीश्वरः शंकूष' एवं पान्धाराम भिसामा गुस्सुमोमानानपावरपा पो तस्तः सतीमनप्रसादनवधनः संमानसंनिधामरलंकारवानश्चोपचयं, प्रवेश्य च वविद्धिजोशमान कर्णोरथारूवां वेम", पुन: 'अरे निहीन. किमि नगरे म सन्ति सकललोकसाधारणभोगाः सुभाः सीमन्तिम्यः, येनवमाधरः। कथं न दुराचार. एवमाचरात्र विलायं विलोनोऽसि । तश्विानोमेष यषि भवन्तं तृषाङ्करमिव तृणेमि तदा न बहुकूलमपकृतं स्यात्' इति निर्भर निभस्म पुर्नयगरलभुजङ्ग कडारपिङ्ग कुट्टिनोमनोरमा तिथिसत्रिण'मुग्रसेनमत्रिणं च निखिलजनसमक्षमा धारणापूर्वक ११प्रायासयत् । दु१२प्रवृत्तामङ्गमातङ्गः कटारपिन-स्तया प्रजाप्रत्यक्ष माकारितः सुधिरमेतदेनःफलमनुभूय दशमीस्प3 सन् श्वभ्रप्रभवमाजम जनमभजत ।
भवति चात्र बलोकः--
राजा--'पुष्य 1 मन्त्री को रहने दो, तुम सब समाचार कहने के योग्य हो ।' पुण्य-स्वामी ! मेरी पत्नी ही प्रस्तुत घटना के कथन करने में समर्थ है।' गजा ने पना को बुलाकर कहा-'माता ! यह क्या घटना है ? पद्मा ने सब वीसा हुआ वृत्तान्त कह दिया।
वृत्तान्त सुनकर राजा नट-सरीखा उनकट हर्ष को और विशेष कोष को दशा का अनुभव कर रहा था । उसने समस्त अन्तःपुर की सौभाग्यवती स्त्रीजनों द्वारा नमस्कार किये गए चरण-कमल वाली पद्मा की पतिव्रता स्त्री जनों के हृदयों में आनन्द उत्पन्न करने वाले वचनों द्वारा और सन्मान के समीपवर्ती वस्त्र व आभूषणों के प्रदान द्वारा सम्मानित करके उसे वेदार्थ जानने वाले ब्राह्मणों द्वारा स्कन्ध से वहन किये जाने वाले रथ में बैठाकर उसके गृह में प्रविष्ट कराया । पश्चात् कुट्टिनी धाय का और कडारपिङ्ग का अत्यन्त तिरस्कार करते हुए बोला-'अरे नीव ! क्या इस नगर में समस्त जनों द्वारा सार्वजनिक रूप से सम्भोगवाली सुन्दर वेश्याएं नहीं हैं ? जिसके कारण तूने ऐसा अनैतिक आचरण किया । अरे दुराचारी ! ऐसा आचरण करता हुआ तु यहाँ मरण प्राप्त कर क्यों नहीं मरता? असः यदि इस समय मैं तुझे तुणाकुरसरीखा नष्ट करता हूँ, तो यह तेरा विशेष अपकार नहीं होगा।'
इस प्रकार अत्यन्त तीक्ष्ण तिरस्कार करके अनीति रूपी जहरीले सांप-सरोस्खे कडारपिङ्ग को और कुदिनी धाय के मनोरथरूपी अतिथि के यजमान उनसेन मन्त्री को समस्त लोक के समक्ष विशेप आक्रोशपूर्वक देश से निर्वासित कर दिया-निकाल दिया। इस प्रकार कहारपिङ्ग, जिसका कामदेवरूप चाण्डाल निन्द्य कार्य में संलग्न है, व्यभिचार के कारण प्रजाजनों के समक्ष तिरस्कृत होकर चिरकाल तक इस पाप का फल भोगता रहा फिर मरकर नरक लोक में गया।
इस विषय में एक श्लोक है, उसका अर्थ यह है
१. भट्टिनी । २. समर्था भवति । ३. नटाचार्यवत् । ४. स्कन्धेनोस्यमानो रथः विमानाख्यः । उक्त --कीरथः
प्रवहणं ड्यनं व समं अयम् । ५. गृहं प्रवेश्य । ६. विनाशं गत्वा किन विनष्टोऽसि ?। ७, हितस्मि । ८. अतिसरं । ९. मत्री यजमानः, यजमानं। १०. 'आक्रोशः' टि००, यशपंत आक्षारणा परिभवः। ११. निवारितः। १२. दुष्टप्रवृत्तेः अनङ्ग व मातङ्गो यस्य । १३. मृतः सन् । १४. स्थानं नरकलोक श्रितः इस्पर्थः ।