Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
अष्टम आश्वासः
३७९
तषा सर्व एव हि नानां प्रमाणं 'लौकिको विधिः। पत्रमण्यवत्वहानिन बनवतषणम ॥२२॥
इत्युपासकाध्यपने स्नानविधिर्नाम धतुस्त्रिज्ञत्तमः कामः ।
द्वये देवसेवाधिहताः संकल्पिताप्तपूज्यपरिप्रहाः कृतप्रतिमापरिप हाश्च, संकल्पोऽपि 'इस्लफसोपलारिविष न समयान्तरप्रतिमासु विधेय: । यतः--
"शुद्ध वस्तुनि संकल्पः फन्माजन इवोचितः । 'नाकारान्तरसंक्रान्ते यथा "परपरिपहे ।।२३।।
सत्र प्रपमानप्रति समयसमाचारविधिममिधास्यामः । तया हि ! (गर्भान्वय, दीक्षान्वय ब कन्वय क्रियाओं ) के निश्चय करने के लिए जैनशास्त्रों का विधि-विधान हो उत्कृष्ट है ॥ २०॥ क्योंकि शास्त्रान्तरों में संसार के भ्रमण से छुड़ानेवाला सम्यग्ज्ञान दुर्लभ है और लौकिक व्यवहार
त: सिद्ध है, उसमें आगम की अपेक्षा करना निरर्थक है।। २१ । निस्सन्देह जैनधर्मानुयायिओं को वे समस्त लौकिक विधि-विधान ( विवाह-आदि ) प्रमाण है, जिनमें उनका सम्यक्त्व नष्ट नहीं होता और चारित्र ( अहिंसा-आदि ) दुषित नहीं होता। अर्थान्--ऊपर फहे हुए होम, मृतवलि व अतिथि सत्कार-आदि लौकिक विधि विधान में सम्यक्त्व नष्ट नहीं होता और अहिसादि वत्त की श्लति नहीं होती. अतः प्रमाण है, परन्तु वेद और स्मृति ग्रन्थों में यज्ञ में किये हुए प्राणिवध को अहिंसा माना है, उसका आचरण अहिसाव्रत का घातक है और सम्यक्त्व को नष्ट करता है अतः जैनों को प्रमाण नहीं है ।। २२ ॥ इस प्रकार उपासकाध्ययन में 'स्नान-विधि' नाम का चौतीसा कल्प समाप्त हुआ।
देवपूजा की विधि देवपूजा के अधिकारी मानव दो प्रकार के हैं....
१. जिन्होंने पत्र व पुष्प-वगैरह शुद्ध पदार्थों में जिनेन्द्र भगवान की स्थापना करके, उन्हें पूज्य स्वीकार किया है और २. जिन्होंने जिन-बिम्बों में जिनेन्द्र भगवान् की स्थापना करके उन्हें पूज्य स्वीकार किया है, परन्तु विवेकी पुरुष जिसप्रकार पत्र, फल व पाषाण-आदि शुद्ध वस्तुओं में जिनेन्द्र भगवान्-आदि की स्थापना करता है उस प्रकार उसे दूसरे मतों की ब्रह्मा व विष्णु-आदि की मूर्तियों में ऋषभदेव-आदि तीर्थकुरों का संकल्प कदापि नहीं करना चाहिए।
क्योंकि अविरुद्ध या शुद्ध पदार्थ में जिनेन्द्र भगवान् की स्थापना उसप्रकार उचित है जिस प्रकार शुद्ध कन्या में पत्नी का संकल्प करना उचित होता है। जिस प्रकार दूसरे से विवाहित कन्या में पत्नी का संकल्प उचित नहीं है। उसी प्रकार अन्य देवाकार को प्राप्त हुए विष्णु-आदि की प्रतिमाओं में जिनेन्द्र भगवान् की स्थापना अयोग्य ( आगम से बिरुद्ध) है ।। २३ ॥
अब हम पत्र व पुष्प-आदि में जिनेन्द्र भगवान् की स्थापना करके देव-पूजा करनेवाले श्रावकों के प्रति पूजा-विधि के विषय में धर्मोपदेश देंगे
१. लौकिको विधिः विवाहः । २. द्विप्रकाराः पुरुषाः। ३. 'मंकल्पिताप्लपूजिताः' इति का। *, 'संकल्पितोऽपि
इति कः । ४. 'यथा दलकलाविघु संकल्पी जिनस्य क्रियते तथा अन्यदेवप्रतिमायां जिनसंकल्पो न क्रियते इत्यर्थः' टि००, 'न कर्तव्यः क्व समयान्तरप्रतिमासु केष्विव दलादिषु इव । अन्यदेवहरहिरण्यगर्भप्रतिमाविषये जिनसंकल्पो न क्रियते' दति दि० ख०। ५. अविरुद्ध। ६. न अन्यदेवाकारसंक्रान्ते उपलायो। ७. यपा परपरिग्रहे परिणीतकन्यायो संकल्पोऽनुचितः अयोग्यः । ८-९. संकल्पितासपूण्यपरिग्रहान् प्रति धर्मोपदेशों दास्यामः ।