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यशस्तिलकपम्पूकाव्ये पोषक्षालुष्यमोधे भमनिमितत्वमवस्य तस्तैः प्रलोभनवस्तुभि. काचवहानां विहितोपचारमा संग्रह 'अतस्वनीयापायोवन्तः "स्फायमानमनोमन्युक्तान्तः पिण्याकगन्धः 'पुत्र, मिखिलकलावदासपित्त सुबत्त, भवत्पिसस्त्रमुः सुतशोकशक्तशमनाय मयावश्यं तन गन्तव्यमपस्नातम्यं च। ततस्त्वयाप्यताः "परिस्कन्दलोकप्रलोभनेम साघु संग्रहोसध्याः' इस्युपहरे' पाहुत्य सकलजगद्यवहाराबसारविद्या काकग्द्यां तोकोकभूषिष्टापास्तर्ण कनिष्ठाया दर्शनार्थमगण्यत । ५०असवयवहारण्यायत्तः सुबत्तः तातोपदेशमनिय समवस्यन् । २ यतो राजपरिगृहीतं तृणमपि गृहीत काश्मनीभवति संपचते च पूर्वोपाजितस्याप्यर्पस्यापहाराय प्राणसंहाराय चेति जातमतिनकामपोष्टको समयाहीत् ।
__ महालोमलोसताम्धः पिण्याकगन्धस्तस्याः पुरोऽपस्नायागतः मुतमप्रावीतस, किपतीः खलु स्वमिष्टकातती. पर्यग्रहोः ।
स्तेययोगविनिवृत्तः सुदत्त:-'तात, नकामपि ।'
प्रादुर्भबद्दीघदुर्गतिदुरितबन्धः पिण्याकगन्धः समर्षे सवाचारकूतार्य पुण्यभाजि जि परमुत्तरमपश्यन्, 'पक्षीमो कमी परिक्रमणक्षमौ मम नामविष्यतो तवा कथंकारमहं मन्मनोरमवन्यो १४ काकन्यामागमिष्यम् । अतः "एताबेन ईंट की समस्त मलिनता नष्ट हुई तब उसने उसे सुवर्ण की ईंट निश्चय की । फिर तो यह उन उन प्रलोमन वस्तुओं ने प्रधान द्वारा उनहगी उसकी के उनसे ईंटों का संग्रह करने लगा।
एक दिन पिण्याकगन्ध ने अपने भानेज की मुत्यु का समाचार सुना और इससे उसका मानसिक शोकरूपी यमराज बढ़ा, अतः उसने अपने पुत्र को एकान्त में बुलाकर कहा
___ 'समस्त कलाओं के अभ्यास से विशुज चित्तवाले पुत्र सुदत्त ! आपकी बुआ का पुत्र-वियोग संबंधी शोकरूपी कीला उम्बाड़ने के लिए मुझे वहां अवश्य जाना चाहिए और मृत-स्नान भी करना चाहिए । अतः तुम्हें इस कावड़िक-(बगी उठानेवाले) समूह के लिए प्रलोभन वस्तु के प्रदान द्वारा सोने को ईंटें; अच्छी तरह संग्रह करनी चाहिए।' इस तरह एकान्त में बहकर पिण्याक्रगन्य पुत्र के वियोग का प्रचुर शोक करनेवाली सबसे छोटी बहिन के दर्शनार्थ शीघ्र काकन्दी नगरी में गया, जो कि समस्त लोक-व्यवहार को उत्पत्ति में त्रिवेदो (प्रवीण) है।
यहाँ पर सुदत्त अन्याय से पराङ्मुख-दूरवर्ती-रहता था, अतः उसने अपने पिता का उपदेश संमार का कारण निश्चय करते हुए एक भी ईंट ग्रहण नहीं को; क्योंकि उसे ऐसी नैतिक बुद्धि उत्पन्न हो गई थी'जो मानव राजा का तृण भी चुग लेता है, उसे उसके बदले में सुवर्ण देना पड़ता है। क्योंकि राजकीय साधारण वस्तु की चोरी तीक्ष्ण राज-दण्डवालो होने से पूर्व-संचित समस्त धन नष्ट कराने में व प्राणघात कराने में कारण होती है।
महालोभ को तृष्णा से अन्धे पिण्याकगन्ध ने मृत-स्नान करके उस नगरी से आकर पुत्र से पूछा-- 'पुत्र ! निस्सन्देह तुमने कितनो ईंटों का समूह संग्रह किया ?'
चारो के संबंध से पराङ्मुख हुए सुदत्त ने उत्तर दिया-'पिताजी ! एक भी नहीं।'
घोर दुर्गति के कारण पाप का बंध करनेवाले पिण्याकगन्ध ने, कुटुम्ब-पालन में समर्थ, सदाचार से १. विनाशे सति । २. भारवाहाना। ३. इष्टकाः। ४. भागिनेयमरण । ५. द्धि जायमान । ६. शोकपमः ।
७. मृतस्नान कर्तब्यं। ८ कावड़िक । ९, एकान्स । १०. अन्यायपराङ्मुखः। ११. संसारबारण । १२, जानन् । *. देखिए-नीतिवाक्यामृत' व्यरान समुद्देश मूत्र २८ पृ० २४४ । ( हमारी भाषाटोका)-सम्पादक । १३.केन कारणेन । १४. फारायां। १५. पादौ ।