Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तम आश्वासः
भूवसुरच निक्षिलपरिजनोसियटसिक्यजीवनो कुम्भीपाकोपकम' षट् समासाखान्दुःखक्रमम् ।
पुनरेकवा 'स्वाम्मावेशविदोविनुष्यः पुष्यः तयाविषपक्षिप्रसवसमर्थपक्षिणीसहित कृतपञ्जरपरिकल्प किंवल्पमादाय आगच्छस्त्रिधारेषु वासरेवस्यां पुरि प्रविशति' इति प्रसिद्धम् । तत्प्रतिनी भट्टिमी यिविभवर्णविडम्बितकायेन घटकपकोरबाषचातकाविधवच्छावित प्रतीकनिकायेन पञ्जरालयेन तद्वयेन सह चिरप्रयासोचितवेषजोमे' पुष्यं पुरोपवने विनिवेश्य भट्टो तारम्भसमाषणसनापसलोमनसंकल्पा इतप्रोधिसभ फाकल्पा भिमुखमासीत् ।
अपरेशुः स निखिलगुणविशेष्यः पुष्यः पृथियोपतिभवनमनुगम्य 'वेव, अयं स किंजल्पः पक्षी, इयं च तसवित्री० पतत्रिणी छ' इत्याचरत् ।
राजा-(चिर निर्वयं निणीय च स्वरेण । ) पुरोहित, नंप खलु किजल्पः पक्षी, किंतु कडारपिङ्गोऽयम् । एषापि विहङ्गी न भवति, किं तु तडिल्लतेयं कुहिनी।
पुष्यः-देव, एतत्परिज्ञाने प्रगल्भमतिप्रसपः सचिवः ।
राजा सचिवस्तया पृष्टः इमातलं प्रविविक्षुरिव कोणीतलमवालोफत । जा गिरे और समस्त कुटम्बी जनों के जूठे भात को खाकर जीवित रहने वाले उन दोनों ने छह माह तक नरक के आरम्भ-सरीखा भयानक दुःख भोगा ।
_इसके पश्चात् पया ने एक समय राज्य में ऐसी प्रसिद्धि की, कि 'स्वामी की आज्ञा-पालन में विशेष निपुण पुष्य एक पिंजरे में बन्द किंजल्प पक्षो को और इस प्रकार के पक्षी को जन्म देने में समर्थ पक्षिणी को लेकरवा रहा है और वह तीन बार दम में नगरी में प्रविष्ट हो रहा है।' इसके उपरान्त उसने चिरकालीन प्रमाण के योग्य बेप धारण करने वाले अपने पति पुष्य को ऐसे उन दोनों (वाडारपिङ्गव धाप ) के साथ पहले ही नगर के बगीचे में ठहराया, जिनका शरीर नाना प्रकार के वर्षों ( पीत र रकादि ) द्वारा विचित्र किया गया था और जिनके शारीरिक अवयव ( हस्त व पाद-आदि) समूह चिड़िया, चकोर, नीलकण्ठ व चातक-आदि पक्षियों के पंखों द्वारा आच्छादित किये गए थे और जो पिंजरारूपी गृहवाले थे । और वह ( पद्मा), जो ऐसे सखोजनों से भूषित थी, जो कि पुष्य के कारण से उत्पन्न हुए आरम्मवाले संभाषण से युक्त था, जिसने प्रवास में गये हुए पतिवाली स्त्री का वेष धारण किया था, पति के सन्मुख गई।
दूसरे दिन ममस्त गुणों में उत्कृष्ट पुष्य राज-भवन में जाकर बोला-'देव ! यह वही किंजल्प पक्षी है और यह उसको माता पक्षिणी है ।'
राजा- बहुत देर तक देखकर व शब्द सुनने से पहचान कर ) 'पुरोहित ! यह किंजल्प पक्षी नहीं है, यह तो कडारपिङ्ग है। यह भी पक्षिणी नहीं है, किन्तु तडिल्लता नामकी बुट्टिनी है'।
पुण्य-'किंजल्प पक्षी के ज्ञान में प्रौढ़ बुद्धि उत्पन्न करने वाले उग्रसेन मन्त्री हैं।'
राजा ने मन्त्री से उन्हें पहचानने के लिए पूंछा, तो मन्त्री पृथिवी-तल की ओर देखता रह गया, मानों-पृथिवी-सल में प्रवेश करने का इच्छुक ही है।
१. उपज्ञा ज्ञानमा स्यात् ज्ञात्यारंभ उपक्रमः । २. षण्मासान् । ३. अनुयभूवतुः । ४. धानोसहितं । *. 'इति
प्रसिद्धिवर्तिनी भट्टिनी' क०। ५. प्रतीकाः अवयवाः । ६. सह पृष्यं निवेश्य । ७. नेवनीय। ८. वेषा। ९. सन्मुख गना । १०. माता।