________________
सप्तम आश्वासः
३६३ अमात्यः-शेव, भगवास: पार्वतीपतेः १श्वशुरस्य मन्याफिनीस्पतनिधामकबरनोहारस्य परमगसहबरसेवरीसुरतपरिमलमत्तम तालिमण्डलोविलिरुपमान"मरफतमणिमेखलस्य प्रालयाचलस्थ वृक्षोत्पलखण्डमण्डितशिक्षण्डस्य रत्नधास्दण्डनाम्नः शिखरस्याम्यासे निःशेषशकुन्तसंभवावहा गुहा समस्ति । यस्यां “जटायु-वैनतेय-वैशम्पायनप्रभृतयः शकुम्तयः प्रादुरासन् । 'तस्यामेव "तस्पोत्पतिः । तां च गुहामहं पुष्पश्चरमेकशी नम्वरभगवतीपात्रानुसारियात्साय जानीयः । प्रतिकृतिश्चास्या' कयर्णा मनुष्यसवर्णाच।।
भूपाल:-( संजातकुतूहलः । ) अमात्य, कथं सद्दर्शनोस्कण्ठा ममाकुण्ठा' स्यात् । अमात्यः-देव, मयि, पुणे या गते सति ॥ राजा--अमात्य, भवानतीय प्रत्याः । तत्पुष्यः प्रपातु । अमास्यः-वेय, तहि होयतामस्म सरनालंकारप्रयंक" पारितोषिकम्, "अगणेयं पाथेयं । राजा-कासम् ।
स्वामिचिन्ताचारचक्षुष्यः पुष्यस्तकाविष्टो मेहमागत्य 'आवेर्ण न विकल्पयेत्' इति मतानुसारी प्रयागसामग्री कुक्षुणस्तया सतीत्रतपविधितसमया पाया पृष्टः-'भट्ट, किमकाण्डे प्रयाणासम्बरः ।
मन्त्री-'देव ! भगवान् शङ्कर के इनस्तुर हिमालय पर्वत की, जिसकी गुफाओं का हिम गङ्गा के प्रवाह का कारण है, और जिमकी मरकत मणियों की मेखला ( मध्यभाम या करधनी ) भर्ताओं के साथ गमन करने वाली विद्याधरी कामिनियों के रतिविलास की सुगन्धि में मत्त ( लम्पट हुई भ्रमर-श्रेणो द्वारा विलक्ष्मी (शोभा-हीन ) की जा रही है, कणिकार वृक्षों के समूह से अलङ्कृत चोटीवाले रत्नशिखण्ड नामको शिखर के समीप समस्त पक्षियों को उत्पन्न करनेवाली गुफा है, जिसमें जटायु, गरुड़ व वैशम्पायन-आदि पक्षी उत्पन्न हुए थे । उसी में ही किंजल्क नाम के पक्षी की उत्पत्ति है। उस गुफा को हम दोनों { मैं और पुष्य ) भलीभांति जानत हैं, क्योंकि हम दोनों ने अनेक वार पार्वती परमेश्वरी के दर्शन के लिए वहाँ की यात्रा का अनुसरण किया था। इसकी आकृति अनेक वर्ण ( श्वेत व पोतादि ) दाली व मनुष्य-सी है।'
। उत्पन्न हुए कौतुक वाला राजा-'मन्त्री ! उसके दर्शन की मेरो तीन अभिलाषा किस प्रकार पूर्ण होगी?
मन्त्री-'देव ! मेरे और पुष्य के वहाँ जाने पर ही आपको तीन अभिलाषा पूर्ण हो सकती है।' राजा-'मंत्री ! आप विशेष वृद्ध हो, अतः पुष्य जाय ।'
मन्त्री-'देव ! तो पुष्य के लिए रत्न-जड़ित कङ्कण बाला पारितोषिक दीजिए और मार्ग में हित कारक प्रचुर सामग्री भो ।'
राजा-'बहुत अच्छा।' स्वामी की चिन्ता के अनुकूल प्रवृत्ति करने से मनोज्ञ और राजा द्वारा आज्ञा दिया हुमा पुष्य घर
१. हिमाचलस्य । २ हिमं गलित्वा, जालं मूत्वा गङ्गा बहति । ३. भर्तृसहगमन । ४. चमरौणी । ५. पिलचमी
क्रियमाण । ६. कर्णिकारः। ७. समीपे । ८. पक्षिविशेष। ९. गृहायां। .१०. किंजल्पपक्षिणः । ११. पक्षिणः । १२. ममाना। १३. अमन्दा। १४. वृद्धः । १५. कणं । १५. प्रचुरं। १५. प्रवृत्तिसुभगः । १८. राज्ञा आविष्टः पुष्यः।