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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये पुनरगण्यपण्यविनिमयेन तस्यविस्यमात्माभिमतं वस्तुसन्धमावस्य प्रत्यावर्तमानस्यादरसागरावसानस्याकामप्रवजनलादनिकाल्परिवतित पोतपात्रस्य यद्धविष्यत्तया आयुषः शेषत्वासस्पेकस्म प्रमावफलका". पलम्बनोगतस्य कण्डप्रवेशप्राप्तजीवितस्य कथंकपमपि क्षणवाया: क्षमिति चरमयालक्षणेऽधिरों घोपतन्धिरभवत् ।
___ ततोऽसौ "सुधिलदारीरस्वादपारामारक्षारबारिवशवांश"काशयश्चिरायाचित "मूषियः फरप्रचारपिलचक्रवाकचिन्तामणी ५१ प्रागवललिकानबालघामणी कमलिनीलविकासाहितहंसवासिताशमणि विश्यकमणि' 3 पवलललितान्तरालविरे लोपनगोबरे संजाते सति यान्यवनमरणाचविणसंद्रवणा"मचातीवान्तमनस्तया १ छातचनायकायः पटवरचलचोरी निश्चिताङ्गकटि: कर्पटिः परपस्त्यो पास्तिनिरस्ताभिमानावमिरवतंनि:सन् क्रमेण सिंहपुरं नगरमागत्म गौमात्रावसेयर पूर्वपर्यायस्तं महामोहरसो पसारितीति श्रीभूतिमभिशानाधिकवाक्यो माणिकसप्तकमयाचत । परप्रतारणाम्यस्तश्रुतिौति:२४ श्रीभूतिः ।
वहाँ अनगिनती विक्रय वस्तुएँ पेंचकर तथा उनके बदले में चिन्तवन के लिए अशक्य व मनचाही वस्तु-समूह खरीदकर वापिस लौट रहे उसको जव समुद्र का किनारा समीप आया तब असमय में आये हुए प्रचण्ड शक्तिशाली वायु के झकारों से ( बड़े जोर का तूफान माने से ) इसका जहाज उच्छलित हो गयाउलट गया । देव ( भाग्य' ) की अवलम्बन-परता से व बायु बाको रहने से बह टूटी हुई जहाज के टूटे हुए काष्ठ खण्ड को ग्रहण करने उधत इमा। कण्ठदेश में प्राप्त हुए प्राणवाले उसे रात्रि के अन्तिम पहर बीसने पर किसी प्रकार से समुद्र-तट की प्राति हुई।
यह सुख से वृद्धिंगत पारीर वाला था, परन्तु उक्त घटना से और अपार समुद्र के खारे जल से इसका चित्त शून्य हो गया और चिरकाल में इसकी उत्पन्न हुई मच्छी दूर हुई । जब ऐमा सूर्य दृष्टिगोचर हुआउदित हुआ, जिसने अपनी किरणों के प्रसार से चकवी-चकबो का चिन्तारूपी मणि चूर-चूर किया है। जो उदयाचल को शिखर-मण्डल का चूडामणि ( मुकुटमणि ) है। जिसने कमलिनी के समूह को विकसित करने से हंसिनी में सुख स्थापित किया है और जो विकसित कमलों के मध्य प्रविष्ट होने से मनोज है । तब बन्धुजनों के मरण से और धन के बिनाश हो जाने से उसे विशेष मानसिक दुःख हुआ। उसकी शारीरिक कान्ति म्लान हो गई यो । उसकी शरीररूपी छोटो गाड़ी जीर्ण वस्त्र के चीथड़ों से आच्छादित थी। वह निर्घन था। परगृहों को सेवा से उसकी अभिमानरूपी पृथिवी नष्ट हो चुकी थी। अन्त में आजीविका-शून्य हुआ वह घूमता-घूमता क्रम से सिंहपुर में आया । उसको पूर्वदशा केवल वचन द्वारा ही निश्चय करने योग्य थी। वह थीभूति का स्मरण करके जोर-जोर से चिल्लाता था। उसने तोड़ लोभ के कारण प्रीति का त्याग करनेवाले श्रीभूति से अपने सात रत्न मांगे।
दूसरों को ठगने के लिए वेद व स्मृति शास्त्र का अभ्यास किये हुए श्रीभूति ने सोचा
१. घम्सुसमूह। २. त्र्याधुटितस्य । ३. उच्छलित । ४. देवावलम्बनपरतया। ५. गुटितभानप्रवणिकाष्ट। ६.
रात्रः । ७. समुद्रतट। ८. द्धित। २. शुन्यचित्त । १०. स्फैटिन । ११. चिन्ता एव मणिः । १२. स्त्री। १३. आदित्य-सूर्य । १४. विकसत्वगल । १५. धनविनाशात् । १६. मानसदुःखेन । १७. कृषः । १४. जीवस्त्र । १९. अङ्गमेव याकदिः । *. 'कटिमात्रयस्थः कापड़ीसदृशो वा' इति दि. ७०। पक्षिवायां नु काटिः निस्वः ।' 'दरिद्री' इति टि० च । २०, परगृहसेवा । २१. 'वनिः आजोविफा' टि० ख०। ६० तु 'अघर्ता-निर्जीविका । २२. जातानुक्रमः । २३, त्यत्तस्नेह । २४. शास्त्र, वेदः स्मृतिभ्न ।