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धष्ठ आश्वासः
२६७ पण्डिते शृङ्गारगर्भगतिरह 'स्योपवेशिनि समस्तभवनमनोमोहमसिद्धौषधं प्रतिदिनं प्रादुर्भावसविषे सात योवन सा रूपसंपन्महीयसी बुद्धवासी सोसासमुत्तुगत मङ्गभङ्गोत्सङ्गसंगता तं श्रमणिका कृषिहारोपान्सागमनं पूतिकवाहनं राजानमदर्शत् । राजा घता -
'अलकदलयावतंभ्रान्ता' विलोधनवाधिका' प्रसरविधुरा मन्दोद्योगा स्तमयसकते । त्रिवलिवसनभान्सा नाभी पुनश्च निमजना दिह हि सरिसि' प्रायेणवं मतिम वर्तते ॥ २१२ ॥
इलि विचिन्त्य, चितोभूविज़म्भप्रासमें "निवार्यावषापं ध, "किमियं पदिहितविवाहोपचारा, किं वाचापि "पतिषरा' इति १२भिक्षनाचवध तत्र १३॥द्वितीयपक्षं सर्षपास्मत्पले कर्तव्या' इति समर्पिताभिलाषमापारायं प्रेष्य १"रणरणकजहान्तःकरणः १ शरणमगात् । आप्तपुरुयोऽप्यग्र महिषीपक्षणबन्धेन१७ साध्यसिडि विधाय स्वामिनं सरसमागमिनमफरोत् ।
भवति यात्रा
पुर्य घा पापं वा यत्काले जन्तुना पुराधरिताम् । ततसमये तस्य हि सुखं च बुलं च योजयति ।। २१३ ।। ऊँचे शारीरिक प्रदेशों ( अङ्गोपाङ्गों) के प्रकाशन करने में सूत्रधार-सा है । जो कामदेवरूपी हाथी के मद को उद्दीपित करने में विशेष निपुण है। जो शृङ्गार रस के भीतरो ज्ञान के गोप्यतत्व का उपदेष्टा है और जो समस्त लोक के मन को मोहित करने वाली सिद्ध-औषधि-सा है एवं जो प्रतिदिन वृद्धि के निकट है।
पश्चात् राजा ने उसे देखकर निम्न प्रकार विचार किया
'इस स्त्रीरूपी नदी में मेरी बुद्धि प्राय: इस प्रकार हो रही है वह उसके केशपाशरूपो भवर में पड़ने से भ्रान्त ( एक जगह न ठहरने वाली है। जो नेत्ररूपी तरङ्गों के प्रसार से पीड़ित है। जो दोनों स्तनरूपी बालकामय प्रदेश पर पहुंचने से मन्द उद्योग वाली है। फिर जो त्रिवलियों में भ्रमण करने से थकित है और पुनः जो नाभि में डुबकी लगाने से भी क्लान्त है ।1 २१२ ।।'
फिर उसने काम के विस्तार को रोककर और निश्चय करके मन्त्री को अपनी अभिलाषा प्रकट करले बुद्धभिक्षुओं से पूँछने को कहा--क्या, इसका विवाह हो चुका है ? अथवा अभी तक कन्या है ? यदि कन्या है ? तो इसे मेरे अधीन करनी चाहिए।'
फिर उसका मन अरतिजनक घटना से जड़ हो गया और उसने अपने महल को ओर प्रस्थान किया । यहाँ पर मन्त्री ने पट्टरानी पद देने की प्रतिज्ञा द्वारा प्रस्तुत कार्य सिद्ध करके राजा का उसके साथ विवाह कर दिया। ___ इस विषय से एक आर्माच्छन्द है उसका अर्थ यह है
इस प्राणी ने पूर्व काल में जिस समय पुण्य अथवा पाप कर्म किया है वह ( पुण्य व पाप) उसे समय आने पर निश्चय से क्रमशः सुखी व दुःखी बना देता है ।। २१३ ।।
१. गोप्यतत्त्व । २. समीपे । ३. उपरितनभूमि । ४. भगण। ५. कल्लोल । १. कल्लोल । ७. स्व योपिन्नद्यां मम
मतिरीदी घर्तत। ८. मनोभसरण। ९. एकत्रीकृत्य । १०. कृत । ११. कन्या वा। १२. बौद्धान् । १३. चेत् कन्या मनति सहि मगाधीना कर्तव्येति । १४. मन्भिणं । १५. कलमल ( अरतिजमक ।। १६, गृहं। १७. प्रतिज्ञया । *. रुपकारकारः ।