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समम आश्वांसः २९५ भूयतामत्र मद्यप्रवृत्तिदोषस्योपाख्यानम् - सर्वोश्वराखर्व गर्योमला 'तीभूताहितान्वयनकायेक चक्रापुरावेशपात्रा परिवाजको नाह्नवीजलेषु मणनाय व्रजन्निजच्छायापनिपाताङ्कातिक्रुद्ध मदान्ध गन्धसिन्धु 'रोद्ध र विधान". विवोर्यमाणमे विनोदमे विन्ध्याठयविषये प्रप्रोपोवनासवास्थाचपुनश्वक्तकादम्बरीपानप्रसूता सरास विलासप्र हिलाभिमहिलाभिः सह पलोप वंशवश्यं १ कइयमासेवमामस्य महतो मातङ्गसमूहस्य मध्ये निपतितः सन् सोघुसंबन्ध विधीस मत परुष्य असो किवमुक्तः स्वया मद्यमांसमहिलासु मध्येऽन्यतमसमागमः कर्तव्यः अन्यथा जीवन पश्यसि मन्दाकिनीम्' इति । सोऽप्येवमुक्तस्तिसर्थ पमितस्वापि हि पिशितस्य प्राशने स्मृतिषु महावृत्तयो विपतयः श्रूयते । मातङ्गीस च मृतिनिकेतनं १४ प्रायश्चेतनम्। य एवंविषां सुरां पिवति न तेन सुरा पोता भवतीति निखिल शिखामणो सोत्रामणी मंदिरास्वावाभिसंधि रतुमतविधिरस्ति । येश्च पिष्टवकगुडघातकीप्रायस्तुकार्थः सुरा संघीयते सान्यपि वस्तुनि विशुद्धान्येवेति चिरं चेतसि विचार्यानार्थविद्यानिधानः * कृतमद्यपानस्तन्माहात्म्यात्समाविर्भूत
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में कारण है और दुर्गति का कारण है, इसलिए इस लोक व परलोक में दुःख देनेवाले मद्यपान का सज्जन पुरुषों को सदा के लिए त्याग कर देना चाहिए ॥ ७ ॥
९. अब मद्य पीनेवाले एक संन्यासी की कथा कहते हैं
मद्यपान के दोषों के विषय में एक कथा है, उसे श्रवण कीजिए
'एकपाद' नाम का संन्यासी, जहां के राजा की महान् गर्वरूपी बड़वानल अग्नि में शत्रुओं के वंशरूप मकर हो गए थे, ऐसे पोदनपुर नाम के नगर से गङ्गानदी में स्नान करने के लिए जा रहा था । मार्ग में वह विन्ध्यादat - देश मे गुजरा, जहाँपर अपनी छाया में दूसरे हाथी की सड़ा होने से अत्यन्त क्रुद्ध हुए मदोन्मत्त मतवाले हाथी के मजबूत दाँतों से पृथिवी का मध्यभाग विदीर्ण किया जा रहा था, वहाँ यह शराब पीने वाले और ऐसे चाण्डालों के समूह के मध्य में जा पहुँचा, जो कि उत्पन्न हुए प्रौढ़ यौवन ( जवानी ) रूपी मद्य के आस्वादन से दुगुने हुए मद्यपान से पैदा होनेवाले उत्कट विलास को करनेवाली उन्मत्त विलासिनी तरुणियों के साथ मांग शाकसहित शराब पी रहा था, सुरा पीने से विकृत बुद्धि वाले चाण्डालों ने उसे पकड़ कर कहा'तुझं मद्य, मांस और स्त्री में से किसी एक का सेवन करना होगा, नहीं तो तू जीते जी गङ्गा का दर्शन नहीं कर सकता ।'
चाण्डालों से उक्त प्रकार कहा हुआ तापसी मन में सोचने लगा- 'स्मृतियों में एक तिल या सरसों बराबर भी मांस खाने पर भयानक विपत्तियों का आना सुना जाता है और चाण्डालिनी के साथ रतिविलास करने से मरण लक्षण वाला प्रायश्चित लेना पड़ता है । किन्तु समस्त यज्ञों में चूड़ामणि- सरीखा श्रेष्ठ सौत्रामणि नाम के यज्ञ में मदिरा स्वाद के अभिप्राय वाला वैदिक अनुमति विधान है, और लिखा है, कि जो इस विधि से, अर्थात् - यज्ञ के मन्त्रों द्वारा पवित्र की हुई सुरा पान करता है, उसका मदिरापान मदिरापान नहीं है, क्योंकि जिन पीढ़ी, जल, गुड़ व महुआ आदि वस्तुओं से सुरा बनाई जाती है, वे सब वस्तुएँ विशुद्ध हो होती हैं।'
१. कथानक आख्यानकं तस्य चेदं लक्षणम् --
इतिहास पुरावृत्तं प्रबन्यरचना कथा । दृष्टोपलब्धकथनं वदन्त्यास्यानकं बुधाः ।। १ ।।
२. एकचक्रनगर | ३. महत् । ४. बडवानल। ५. पोदनपुरात् । ६. गज । ७. दन्त । ८ मधे ] ९ प्रचुर १०. मांसशाकसहितं । ११. मद्यं । १२. होन विकलम तियुक्तः । १३. मातङ्ग रुक्तः सन् चिन्तयति । १४. मरणलक्षणं । १५. प्रायश्चित्तं । १६. मनःपूर्वको व्यापारः । १७. निष्पाद्यते । * विधानः क० ० 1