Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तम आश्वास:
तरस्त्रस्य हितमिच्छन्तो मुञ्चन्तश्चरहितं मुलः । मन्यमानः स्वमांसस्य कथं वृद्धि विधापिनः ।। १९ ।। पर" करोलोह सुखं वा दुःखमेव वा । वृद्धयेरे घनषद्दत्तं स्वस्य तज्जायतेऽधिकम् ।। २० ।। मधुप्रायं कर्मधर्माय चेन्मतम् । अधर्मः कोऽपरः किं वा भवेद्दुर्गशिवायम् ।। २१ ।। स धर्मो यत्र नार्मस्तत्सुखं यत्र नासुखम् । सञ्ज्ञानं यत्र नाज्ञानं सा गतिमंत्र नागतिः ।। २२ ।। स्वकीयं जीवितं यद्वत्सर्वस्य प्राणिनः प्रियम् । ततदेतत् परस्यापि ततो हिंसां परित्यजेत् ।। २३ ।। मांसाचिषु दया नास्ति न सत्यं मद्यपायिषु । अतृशंस्यं ममत्येषु मधुवुरुबरसे विषु ॥ २४ ॥ मक्षिकागर्भसंभूतबालाण्डविनिपीडनात् । घातं मधु कथं सन्तः सेवन्ते फललाकृति' ।। ६५ ।। "उद्भ्रान्ता भंगगर्भेऽस्मिन्नण्डजाण्डकखण्डवत् । कुतो मधु" मधुछत्रे १० ब्याबलु अश्घरबोदुम्बरलक्ष त्योः ॥ २७ ॥
जीवितम् ।। २६ ।।
कल्याण के इच्छुक हैं और बार-बार दुःख देने वाले पाप कर्म का त्याग करते हैं, वे दूसरे पशु-पक्षियों के मांस से अपने मांस की वृद्धि करने वाले कैसे हो सकते है ? || १९ ॥ जिस प्रकार दूसरों को वृद्धि के लिए दिया गया धन, कालान्तर में ब्याज के बढ़ जाने से देने वाले को afar प्राप्त होता है ( व्याजसहित मिल जाता है । उसी प्रकार मनुष्य दूसरे प्राणियों के लिए जो सूख या दुःख देना है, वह सुख या दुःख कालान्तर में उसे अधिक प्राप्त होता है । अर्थात् सुख देने से विशेष सुख प्राप्त होता है और दु:ख देने से विशेष दुःख प्राप्त होता है | २० || यदि मद्य-मान, मांस भक्षण और गधु आस्वादन की अधिकता वाला क्रिया काण्ड ( यज्ञ व श्राद्धादि ) धर्म है तो फिर दूसरा अधर्म क्या है ? और दुर्गति देने वाला क्या है ? ॥ २१ ॥ सच्चा धर्म वही है, जिसमें अथ ( हिंसा आदि व मिध्यात्व आदि ) नहीं है। सच्चा सुख वही है, जिसमें नरक आदि का दुःख नहीं है । सम्यग्ज्ञान वही है, जिसमें अज्ञान नहीं है तथा सच्ची गति वही है, जिसके मिलने पर संसार में पुनरागमन नहीं होता || २२ || जिस तरह सभी प्राणियों के लिए अपना जीवन प्यारा हैं उसी तरह दूसरों को भी अपना जीवन प्यारा है, इसलिए जीव हिंसा का त्याग करना चाहिए || २३ || मांस भक्षकों में दमा नहीं होती और शराब पीने बालों में सत्य भाषण नहीं होत्ता एवं मधु और उदुम्बर फलों का भक्षण करने वालों में दयालुता नहीं होती, अर्थात् – निर्दयी होते हैं ॥ २४ ॥
मधु के दोष
सज्जन पुरुष गर्भाशय में स्थित हुए शुक्र-गोणित के सम्मिश्रण सरीखे आकार वाले मधु को, जो कि शहद की मक्खियों तथा उनके छोटे-छोटे बच्चों के घात से उत्पन्न होता है, किस प्रकार सेवन करते हैं ? ॥२५॥ जिसके बीच में छोटे-छोटे शहद की मत्रियों के बच्चे भिनभिना रहे हैं, ऐसे शहद के उत्ते में स्थित हुआ मधु, जो कि अण्डों से उत्पन्न हुए पश्चियों के बालकों के झुण्ड सरीखा है, बहेलियों तथा भील लोगों के लिए खानेयोग्य किस प्रकार हो गया ? यह आश्चर्यजनक है ।। २६ ।।
पाँच उम्बर फलों के दोष
पीपल, गुलर, पाकर बड़ और कयूमर ( अंजीर ) इन पाँच उदुम्बर फलों में भी स्थूल सजीव उड़ते हुए दृष्टिगोचर होते हैं और अनेक सूक्ष्मजीव भी उनमें पाये जाते हैं, जो शास्त्रों द्वारा जाने जा सकते हैं ।। २७ ।।
१. परजने । २. वृद्धिनिमित्तं भवति माजफलं तद्वत् । ३. मांसं गदन्ति इत्येवं शीलाः । ४. कारुण्यं । ५. मनुष्येषु । ६. गर्भवेष्टनं । ७. अलित । ८. पक्षिवालकसमुहदत् । ९. माधुये । १०. मधुफले । ११. भिल्ललोकानां भक्ष्यं । १२. कठुम्बर अंगीरापरनाम