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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये मतगतिरिव चरणकरणानन्दिनी, भरतपदवीव विविधलयनाटपाडम्बरा, पुरंदरपुरीव संनिहितरावता, हरपरिवदिवासीनसौरभेया, शिशिरगिरिदरीब निकोनोपफण्ठकठोरवा, मायानाचलतटोव रमोपशोभिता, ब्रमण्यसंस्थेष प्रलम्बितकुसुमारा, मुरसीसाटनिरिव सविवियु अध्नमण्डला, पायमुरेव पुलियुगलाङ्किता, समयकुमसंपत्तिरिव पूर्णकुम्भाभिरामा, फैटभातितनुरिव कमलाकरसेषिता, समवसरणसभेव प्रसाधितसिंहासना, अजडाशयानुगतापि जनिषिमतो,
( गौरी-पार्वती को सेना ) चाहालविदिता (श्रीमहादेव ईश्वर से अदियिता होती है। जोसी सपाश्र्वागता' ( पार्श्वनाथ तीर्थङ्कर से मुशोभित ) है, जैसी रूपगुणानका' (चित्रकर्म ) सुपाचगिता ( समीप में वृत्तविशेष वाली या चित्रलिखित चन्द्रसूर्य विम्ववालो) होती है। जो सो यक्षमिथुनसनाथा चित्र-लिखित कुबेरों के जोड़ों से सहित ) है जैसी बुवेरपुरी यक्षमिथुनसनाथा ( यक्ष जाति के देवों के जोड़ों ( यक्ष-यक्षिणियों) से सहित ) होती है। जो वैसी अशोकरोहिणी पेशला ( चित्र-लिखित अशोक राजा व रोहिणी रानो से मनोज्ञ ) है, जैसे नन्दनवन-लक्ष्मी अशोक रोहिणी पेशला (अशोक वृक्ष व रोहिणी वृक्षों से मनोज्ञ) होती है। जो वैसी प्रकटरांतजीवितेशा (जहांपर प्रद्युम्नस्वामी चित्र-लिखित है ) है जैसे "शंभुसमाधिविध्वंसबेला (रुद्र के ध्यान को विध्वंस करने का समय } प्रकटरतिजीवितेशा ( कामदेव को प्रकट करने वाली) होती है। जो वेसी चित्रबहला चित्रसष्टिवाली है, जैसे उत्तम कवि की काव्य-रचना चित्रबहला (छत्र, मुरजबन्धादि की बहलता-युक्त) होती है। जो वैसी चरणफरणानन्दिनी" (चरणानुयोम व करणानुयोग संबंधी शास्त्रों से आनन्द देनेवाली ) है जैसे मुर्निमतगति [ नास्तिक-माल व कामसूत्र ) चरण-करण-आनन्दिनी ( चरण ( भक्षण । व कर्ण ( उत्फुल्ल विज़म्भादि ) से आनन्ददायिनो) होती है । जो वैसी विविधलय-नाटयाइम्बरा ( नाना भांति के संगीत-लय के साथ नृत्य के विस्तार वालो) है, जैसे भरतमुनिपदवी (भरतमुनि का नाटचशास्त्र) विविधलयनाट्याहम्बरा नानाप्रकार का यों चे साथ नृत्य का विस्तार वर्णन करनेवाली ) होती है |
अव शास्त्रकार पुरन्दर इत्यादि विशेषणों से प्रस्तुत बसतिका की चित्रलिखित स्वप्नावलि ( १६ स्वप्नों ) का वर्णन करते है--जो वैसी सन्निहित रावत्ता ( चित्र-लिखित ऐरावत हाथीवाली ) है जैसे इन्द्र-नगरी सन्निहि रावता ( निकटवर्ती ऐरावत हाथी-युक्त ) होती है । जो वैसी आसीन सौरभेया (चित्र-लिखित शुभ्र वृषभ वाली) है जैसे हरिषद ( श्री शिव को सभा ) आसोन सौरभेया (वृषभ-नदिया को) स्थिति वाली होती है । जो वेसी निलीनोपकाठकण्ठीरवा ( समीग में चित्रलिखित सिह्यालो ) है जैसे हिमालय की गुफा निलोनोयकण्ठ
१. पागितं विषकर्मणि वृत्तविशेषाः, तीर्थक विशेषागतं च । २. चित्रकर्मणि समीपे चन्द्रसूर्यविनास्विलिखिताः । ३. अशोकतनः, रोहिणीवृक्षः पक्षे अशोकरोहिणी या चित्ररूपं । ,, अषोकवृक्षः, राजा च रोहिणीवृक्षः राशी च । ४. प्रकटः फामी यत्र, पक्ष प्रद्युम्नस्थामी घिलिखितो यत्र ।
६. चित्रार्गः, पक्ष छत्रमुरजबन्यादिः । ७. चरण नगं करणं उत्फुस्कविम्भादिक, चरणकरण आगमविशेषौ । ८. चाकमतं कामशास्त्र वा। ९. पुरन्दर इत्यादिना चित्रालिखिता स्वप्नावली वर्णयति । १०, वृषभः।