________________
षष्ठ भावासः
न
प्रभूतमणस्त्रयः ॥१९४॥
जगत् । कथं सर्वलोकेशः मुलागमः । रापो जरा रजा मृत्युः श्रोधः वेदो मदो रतिः || ५५ ॥ विस्मयो जननं निद्रा विद्यादोऽष्टादश प्रवाः । त्रिजगत्सर्वभूता वोजा: साधारणा इमे ॥२६१२ एभिर्दो द निर्मुक्तः सोऽयमाप्ती निरज्जनः स एव हेतु: सूक्तीनां केवलज्ञानी || ५७॥ रागादा पाठा मोहद्रा वाक्यमुच्यते ह्यनुतम् । यस्य तु नंते दोषास्तस्यानुकारणं नास्ति ||५८ || उच्चावच प्रसूतीला सरवानां सवृक्षाकृतिः । य आव इवाभाति स एव जगत पतिः ॥ ५९ ॥ यस्यात्मनि भूते तस्यें चरित्रे मुक्तिकारणे । एकवाध्यतया वृत्तिराप्तः सोऽनुमसः सलाम् ॥ ६० ॥ अध्यक्ष प्यानमात्पुंसि विशिष्टत्वं प्रतीयते । चथानमध्यवृत्तीनां ध्वनेरिव नगोकसाम् ॥ ६१॥ स्वाध्यतां याति स्वदोषज्ञ रूपतः जनः । रोषतोष वृथा कलधौतापो दिय ॥ ६२॥ णि 'पोजेशनशापसूरपुरःसराः । यदि पगायधिष्ठानं कथं तथा प्तता भवेत् ।। ६३ ।। रागादिदोषसंभूतिज्ञ पामोषु दामात् । असतः परदोषस्य गृहोतो पातकं महत् ॥ ६४ ॥
तत्र
पस्तत्त्ववेशनाद्दुः खवायेंरुद्धरते
पासा
न्तनं
न
१९७
जो तीर्थकर प्रभु मोक्षोपयोगी तस्वदेशना से संसार के प्राणियों का दुःख समुद्र से उद्धार करते हैं, इसलिए जिनके चरणकमलों में तीन लोक के प्राणी नम्रीभूत हो गये हैं, वे सर्वलोक के स्वामी क्यों नहीं है ? ॥ ५४ ॥ भूख प्यास, भय, द्वेष, चिन्ता, मोह, राग, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु, क्रोध, खेद, मद, रति, आश्चर्य, जन्म, निद्रा और खेद ये अठारह दोष तीन लोक के समस्त प्राणियों में समान रीति से पाये जाते हैं, अतः जो इन अठारह दोषों से रहित है, यही निरञ्जन पापकर्मों की कालिमा से रहित- विशुद्ध ) और केवलज्ञानरूप नेत्र से युक्त (सर्वज्ञ) तीयंकर ही आप्त हो सकता है, एवं बही द्वादशांग शास्त्र की सूक्तियों (प्रामाणिक वचनों ) का वक्ता हो सकता है ॥ ५५-५७ ।।
क्योंकि राग या द्वेष से अथवा मोह ( अज्ञान ) से मिथ्या भाषण किया जाता है । परन्तु जिस विशुद्ध आत्मा में उक्त तीनों दोष नहीं है, उसके झूठ वचन बोलने का कोई कारण नहीं है ||५८|| अनेक प्रकार की उत्पत्ति वाले प्राणियों की शकल सूरत सरीखा होकर भी जो उनमें दर्पण सरीखा मोक्षोपयोगी तत्वों को प्रकाशित करता है वही लोन लोक का स्वामी है ॥५९॥ जिसकी आत्मा में, आगम में, तत्वों में, सामायिकआदि चारित्र में और मुक्ति के कारण सम्यग्दर्शन, ज्ञान चारित्र में पूर्वापर के विरोध से रहित वचन-प्रवृत्ति है, उसे ही गणधरों ने आप्त माना है ||६०|| यहाँ पर प्रश्न यह है कि जब आप्त पुरुष मोक्ष चले गए तब उनकी विशिष्टता कैसे जाने ? उसका उत्तर देते हैं- परोक्ष मानव को भी विशेषता ( सर्वज्ञता आदि ) उसके द्वारा उपदिष्ट आगम से येसी जानी जाती है जैसे बगीचे में रहने वाले पक्षियों ( कोकिला आदि ) सुनने से उनकी विशिष्टता जानी जाती है ।
शब्द
भावार्य - जैसे पक्षियों के विना देखे भी उनकी आवाज से उनकी पहिचान हो जाती है वैसे ही पुरुषों को बिना देखे भो उनके शास्त्रों से उनकी भी आप्तता का पता चल जाता है ॥ ६१ ॥ मानव अपने ही गुणों से लोक में प्रशंसा प्राप्त करता है और अपने दोषों से निन्दा प्राप्त करता है, अत्तः सुवर्ण व लोहे सरीखे उन सज्जन व दुर्जन पुरुषों के विषय में तोष ( राग ) ब रोष ( द्वेष ) करना व्यर्थ है ||६२|| ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बुद्ध व सूर्य आदि देवता, यदि रागादि दोषों से युक्त हैं तो वे आप्त कैसे हो सकते हैं ? ||६३|| इन ब्रह्मा १. चिल्ला २. मोहः । ३. सच्चावचं नैकभेदमित्यमरः । ४. प्रकाशयति । ५. परोऽपि नरे ।
६-७. यथा
पक्षिणां शब्दात् परोक्षेऽपि विशिष्टत्वं ज्ञायते । ८. सुवर्ण लोहोरिव । ९. हरि हर वृत्र, सूर्यादयः । १०. पू ब्रह्मादिषु । ११. लस्य शास्त्रात् । १२. गृहणे सति ।